SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन श्रमण संघ का इतिहास A n amaAILERIOINDAll ID DIDIHDINDIATTID AIITH THIS DAIHIDARSHID DImdilIn आ० श्री. विजय वल्लभमूरिजी की आज्ञानुवर्ती सन १६५४ ई० में आपका आगमन पंजाब में हा। दस २ तथा पन्द्रह २ हजार नर नारियों के विदषो साध्वी श्री मगावती श्री सामने आपके भाषण हुए । आपके आह्वान पर सारे पंजाब की जैनाजैन जनता दहेज के विरुद्ध कटिबद्ध (लेखक-महेन्द्रकुमार 'मस्त'-समाना पंजाब) । हुई। पैःसु के मुख्य मंत्री श्री वृषभान की उपस्थिति भगवान श्री ऋषभ देव के समय से लेकर आज मे सैकड़ों नवयुवक और नवयुवतियों ने दहेज न लेने तक जैन समाज में अनेकों ऐसी साध्वियां हुई हैं देने की प्रतिज्ञाएँ की । श्री प्रात्मानन्द जैन हाई स्कल, जिन्होंने अपने आत्मबल, चरित्रपल तथा तपोबल लुधियाना क लिय आप ही के उपदेश से अस्सी से सारे संसार के धारा प्रवाह को परिवर्तित कर हजार रुपये का दान इकट्ठा हुआ। दिया। इन महा सतियों ने अपने आदर्श जीवन होशियारपुर (पंजाय) का जन हाई स्कूल प्रायमरी से एक नए युग को जन्म दिया है। से हाई स्कूल बनना शुरु हुआ। नकोदर का जैन कन्या __साध्वी श्री मृगावती का जन्म राजकोट (सौराष्ट्र) स्कूल मिडल बनना प्रारम्भ हुई। अमृतसर में श्री आत्म बल्लभ शिल्प विद्यालय की स्थापना हुई । वहाँ के एक धनाढ्य जैन घराने में हुआ उदाणी गोत्रीग के अन्ध विद्यालय के लिये हजारों रुपये एकत्र माता-शिवकुंवर बहन-ने अपनी ग्यारह वर्षीय बेटी करवाये। रोपड़ और मालेरकोटला में श्री आत्म को साथ लेकर दीक्षा ग्रहण कर लो। दोनों के नाम वल्लभ जैन भवन ( उपाश्रय ) बने । पंजाब के जैनों क्रमशः शीलवती श्री तथा मृगावती श्री हुआ । माँ की मुख्य प्रतिनिधि सभा श्रीवास्मानन्द जैन महासभा बेटी का रिशता गुरूणी तथा शिष्या का रिशता हो का अधिवेशन अपनी निश्रा में बुलगकर उस से गया। अब बाल-साध्वी मृगावती की शिक्षा शुरू समाज कल्याण के महत्वपूर्ण प्रस्ताव पास करवाए हुई। वर्षों के परिश्रम के बाद आप ने हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत तथा गुजराती पर काफी अधिकार । तथा पैसा फण्ड जारी कि- । गुरुदेव श्री विजयानन्द प्राप्त किया। अपने बंगाल-प्रवास में बंगला भाषा सूर सरिजी के जन्मस्थान "लहरा" में ४२ फीट ऊँचा मनोहर कीर्तिस्तम्भ बनवाया। पट्टा में लड़के लड़कियों तथा पंजाव में घूमते हुए अंग्रेजी सीखी। उर्दू । के लिए श्री जैन धार्मिक पाठशाला स्थापित की। कवियों के पद्य भी आपने खूब याद किये हैं। शिमला, कांगड़, भाखड़ा नगल तथा कसौली जसे स्व. आचार्य श्री विजय वल्लभसरिजी की आज्ञा दुर्गम प्रदेशों में धनं प्रभावना की । बाखन मैमोरियल से आपने एक चातुर्मास कलकत्ता में किया तथा क्रिश्चियन मैडिकल हॉस्पिटल, लुधियाना की धर्मशासनोन्नति एवं धर्म प्रभावना में पूग योग दिया। शाला के लिए भी हजारों रुपये दान दिलवाये । काश्मीर गीता, उपनिषद्, रामायण, कुरान, बाइबल तथा के जम्मु शहर में महावीर जयन्ती के अवसर पर वहाँ त्रिपिटक आदि खूब मनन किये हैं। आपके सरस, के मुख्यमन्त्री बख्शी गुलाब मुहम्मद ने साध्वी श्रा प्रभावोत्पादक तथा नूतन शैली वाले व्याख्यानों में की प्रेरणा पर ही जैन स्थानक के लिए भूमि देने की जेनेतर लोग अधिक हाते हैं । पाषांपुरी में श्रीगुलजारी घोषणा की। अम्बाला शहर में श्री वल्लभ विहार लाल नन्दा के सामने विशाल जन समूह में आपने (समाधि-मन्दिर) का बनना आरम्भ हुआ। भूमि दान पर विद्वता पूर्ण भाषण दिया था। भारत आपने महिला स्वाध्याय मंडल बनवाए हैं। की मन्त्रिणी सुश्री तारकेश्वरी सिन्हा भी आप से भली चिरकाल से आप शुद्ध खादी का प्रयोग करते हैं। भाँति परिचित है। आपकी एक ही शिष्या सुज्येष्ठा श्री के नाम से है। Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy