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________________ ११४ जैन श्रमण संघ का इतिहास ---------D-TER || [२३] श्री विवेक विजयजी के आ० श्री विजय उमंग सुरिजी हैं। A [२४] ० श्री विजय ललितसरि के शिष्य आ० विजय पूर्णानन्दसूरि विद्यमान हैं । [२५] उपाध्याय श्री सोहनविजयजी के ३ शिष्य हुए जिनमें आ० श्री समुद्रसूरिजी विद्यमान हैं । [२६] श्र० श्री विजयदानसूरिजी के ४ शिष्यों में ० श्रीमद् विजय प्रेमसरि जी विद्यमान हैं । [२७] आ० श्री विजय धर्मसूरिजी के ७ शिष्य हुए जिनमें आ. श्री विजयेन्द्रसूरि वर्तमान में आ हैं । [२८] सूरि सम्राट आचार्य श्रीमद् विजय नेमि सूरीश्वरजी म० सा० के १८ शिष्य हुए: आ विजय दर्शनसूरिजी ० विजय उदय सूरिजी आ० विजय विज्ञानसूरिजी, विजय पद्म सूरिजी पं० श्री सिद्धि विजयजी, आ० विजयामृतसूरिजी श्र० विजय लावण्य सूरिजी आ. जितेन्द्र सूरिजी आदि आचार्य तथा उ० श्री पद्मविजयजी, सिद्धीवि० गणी, भक्ति वि०, रूप वि० गीर्वाण विमान वि०, धन वि० वाचस्पति वि, संपत वि० प्रेम वि० प्रभावि० आदि । ० विजयदर्शन सूरिजी के कुसुम त्रि०, गुण वि०, जयानन्द वि०, प्रियंकर वि० तथा महोदय वि० आदि ६ शिष्य प्रशिष्य हैं । विजय उदयसूरिजी के आ० विजय नन्दन सूरिजी सुमित्र वि०, मोती वि०, मेरु वि, कुमुद पं० कमल वि० यदि १२ शिष्य प्रशिष्य हैं । आ० विजयनन्दन सरिजी के सोम विजयजी, शिवानन्द त्रि, अमर वि, वीर वि०, आदि ७ शिष्य प्रशिष्य हैं । श्र० बिजय विज्ञान सूरि के आ. कस्तूर सूरिजी पं० चन्द्रोदय वि०, प्रियंकर वि० आदि । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ० लावण्यसरिजी के पं० दक्ष विजयजी तथा पं० सुशील विजयजी गणि, चन्द्रप्रभ वि० आदि । आ० श्री विजयामृत सरि के राम वि० देव, खान्ति वि०, पुण्य वि०, निरंजन वि० तथा धुरन्धर वि० आदि । ० जितेन्द्र सूरि के विद्यानन्द वि० आदि । [२६] आ० विजय सिद्धि सूरिजी के ६ शिष्य हुए जिनमें पाँचवें प्रा० विजय मेघसूरि हैं। दूसरे शिष्य श्री विनय वि० के आ० श्री भद्रसूरिजी शिष्य हैं । [३०] योगनिष्ट आ. बुद्धिसागरजी के शिष्य आ. अजित सागर सूरि तथा आ० ऋद्धि सागर सूरि हैं । यद्यपि उपरोक्त फुटनोट हमने सुक्ष्म जानकारी द्वारा लिखने का प्रयत्न किया है परन्तु तपागच्छीय मुनि समुदाय वर्तमान में सब से बड़ा समुदाय है तथा अति प्राचीन है। बड़ वृक्ष की तरह फला फूज़ा है अतः इसकी महानता को पहुँचना कठिन है इसी दृष्टि से कई भूलें रइजाना संभव है । अतः उपरोक्त विवेचन में भूलें रही हों, न्यूनाधिक लिखने में गया हो तो क्षमाप्रार्थी हैं और भूलें सुझाने का निवेदन करते हैं ताकि आगामी संस्करण में संशोधन हो सके । श्री तपागच्छीय पूर्व परम्परा के सम्बन्ध में विशेष जानकारी के लिये 'श्री तत्र गच्छ श्रमण वंश वृक्ष' प्रकाशक श्री जयन्तीलाल छोटालाल शाह अहमदाबाद नामक ग्रन्थ देखना चाहिये । उक्त विवेचन देने का एक मात्र प्रयोजन वर्तमान मुनि परम्परा से पूर्व परम्परा की जानकारी को सुगम बनाना मात्र ही है । अब हम आगे के पृष्ठों में वर्तमान मुनि समुदाय के सम्बन्ध में संक्षिप्त विवेचन देंगे । - लेखक www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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