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________________ तपागच्छीय जैन मुनि परम्परा १३ (५) तिलक विजयजी के १२ वी पीढ़ी में पं० (१३) श्री बुद्धि विजयजी (बटेरायजी ) के ३ रे हेत विजयजी हुए जिनके दूसरे शिष्य पं० हिम्मत शिष्य श्री नीति विजयजी के शिष्य विनय विजयजी विजयजी हुए जो वर्तमान में मेवाड़ केसरी प्रा. के शिष्य आ० विजयवीरसूरि हुए तथा तीसरे शिष्य हिमाचल सूरि के नाम से प्रसिद्ध हैं। सिद्धी विजयजी की ४ थी पीढी में कुमुद विजयजी (६) ६५ वें पट्टधर जिन विजय गणी की तीसरी आचार्य हुए | पीढी में रूप विजयगणी हुए जिनके २ शिष्य हुए (१४) श्री बुटेरायजी म० के ५ वें शिष्य हेम कीति विजयगणी और अमी विजयगणी। कीर्ति वि० विजय जी के ४ शिष्य हुए जिनमें पं० पद्म विजयजी के कस्तूर विजयगणी हुए। विजयप्रभसुरि नामक आचार्य बने । ___ (७) अमी विजयजी की चौथी पीढी में प्रा० (१५) न्याय भोनिधि प्रा. श्री विजयानन्दसूरिजी विजयनीति सूरिजी हुए। ( आत्मारामजी ) म. के ७ शिष्य हुए। पं० लक्ष्मी (E) श्री कस्तूा विजयगणी के ६ शिष्य हुए- वि०, चारित्र वि०, उद्योत वि०, वीर वि०, क्रांतिविजय महायोगीराज श्री बुद्धिविजयजी (बुटेरायजी), अमृत जय वि० और अमर वि० । विजयजी, पद्मविजयजी, गुलाब विजयजी, शुभविजय (१६) ५० लक्ष्मी विजयजी के ४ शिष्य हुए। जी और श्रा. विजय सिद्धी सूरिजी। श्री हसविजयजी, आ. विजय कमल मूरिजी, पं० हर्ष. (e) श्री बुद्धिविजयजी (बुटेरायजी) महाराज के विजयजी, तथा कुमुद वि० । ७ प्रसिद्ध शिष्य हुए-१ तपागच्छाधिपति श्री मुक्ति (१७) श्री हंसविजयजी के संपत वि० तथा दौलत विजयजी राणी (मलचन्दजी महाराज) २ श्री यद्धि वि० : दौलत वि० के धर्म विजय जी आचार्य हए । विजयजी (वृद्धिचन्दजी), ३ नीति विजयजी, ४ भानंद (१८) कु. वीरविजयजी के आ. विजय दानसरि जी आदि ५ शिष्य हुए। विजयजी, ५, आ. श्री विजयानन्द सूरिजी (आत्मा (१६) आ० विजय कमलसरिजी के प्रा० श्री रामजी) ६ तपस्वी खान्ति विजयजी दादा। विजय लब्धिसरिजी, हिम्मत वि०, नेम वि० तथा (१०) श्री मुक्ति विजयजी गणी के ५ शिष्य हुए लावण्य वि०। जिनमें भविजय कमल सरिजी प्रथम है (२०) श्री हर्ष विजय जी के प्रा० विजय वल्लभ _ सुग्जिी, मोहन वि०, प्रेम वि०, शुभ वि० आदि। (११) श्रा वृद्धि विजयजी (वृद्धिचन्द्रजी) महाराज। (२१) कु० कुमुद विजय जी के तीसरी पीढी में के । शिष्य हुए जिनमें प्रा. विजय धर्म सूरिनी तथा आचार्य सौभाग्य सुरिजी हुए। मा० विजय नेमिसूरिजी की परम्परायें विद्यमान हैं। [२२] श्रा० श्री विजय वल्लभसरि जी के विवेक (१२) प्रा. विजय कमल सूरजी के ५ शिष्य विजय ना, मा० ललितसरिजी, उ• सोहन विजयजो, विमल .वजय जो, विद्यावि०, विचार, विचक्षण, शिव जिनमें शामविजय केसर सूरिजी श्रा० विजय विकास, दान और विक्रम वि०, आदि देवसूरिजी तथा भा० विजय मोहन सूरिकी तथा शप्य हुए। विशेष वश वृत्त परिचय विभाग में विनय विजयजी मुख्य हैं। दिया जारहा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034877
Book TitleJain Shraman Sangh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain
PublisherJain Sahitya Mandir
Publication Year1959
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size133 MB
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