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________________ श्रीआदिनाथ-चरित www.rrmwwwxxx या बगलमें, थोड़ी देर दबाओ और उनमें जब गरमी पहँचे तब उन्हें खाओ।" लोग ऐसा ही करने लगे। मगर फिर भी उनकी शिकायत नहीं मिटी। ___ एक दिन जोरकी हवा चली। वृक्ष परस्पर रगड़ाये। उनमें अग्नि पैदा हुई । रत्नोंके भ्रमसे लोग उसे लेनेको दौड़े। मगर वे जलने लगे, तब प्रभुके पास गये । प्रभुने सब बात समझकर कहा कि, स्निग्ध और रुक्ष कालके योगसे अग्नि उत्पन्न हुई है। तुम उसके आसपाससे घास फूस हटाकर, उसमें औषधि पकाओ और खाओ। पूर्वोक्त क्रिया करके लोगोंने उसमें अनाज डाला । देखते ही देखते सारा अनाज उसमें जलकर भस्म हो गया। लोग वापिस प्रभुके पास गये । प्रभु उस समय हाथीपर सवार होकर सैर करने चले थे । युगलियोंकी बातें सुनकर उन्होंने थोड़ी गीली मिट्टी मँगवाई । महाबतके स्थानमें, जाकर हाथीके सिरपर मिट्टीको बढ़ाया और उसका बर्तन बनाया और कहा:" इसको अग्निमें रखकर सुखा लो। जब यह मूख जाय तब इनमें नाज रखकर पकाओ और खाओ। सभी ऐसे बासन बना लो।" उसी समयसे बर्तन बनानेकी कलाका आरंभ हुआ। विनीता नगरीके बाहिर रहनेवाले लोगोंको वर्षादिसे कष्ट होने लगा। इसलिये प्रभुने लोगोंको मकान बनानेकी विद्या सिखाई। चित्रकला भी सिखाई । वस्त्र बनाना भी बताया। जब प्रभुने बढ़े हुए केशों और नाखूनोंसे लोगोंको पीडित होते देखा, तब कुछको नाईका काम सिखलाया। स्वभावतः कुछ लोग उक्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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