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________________ जैन-रत्न कुबेरने बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी नगरी बनाई। उसका दूसरा नाम अयोध्या रक्खा गया । जन्मसे बीस लाख पूर्व बीते तब प्रभु प्रजाका पालन करनेके लिये विनीता नगरीके स्वामी बने । अवसर्पिणी कालमें ऋषभदेव ही सबसे पहिले राजा हुए । ये अपनी सन्तानकी तरह प्रजाका पालन करने लगे। उन्होंने बदमाशोंको दंड देने और सत्पुरुषोंकी रक्षा करने के लिए उद्यमी मंत्री नियत किये; चोर, डाकुओंसे प्रजाको बचानेके लिए रक्षक-सिपाही नियत किये । हाथी, घोड़े रक्खे: घुड़सवारोंकी और पैदल सैनिकोंकी सेनाएँ बनाई । रथ तैयार करवाये । सेनापति नियत किये। ऊँट, गाय, भैंस, बैल, खच्चर आदि उपयोगी पशु भी प्रभुने पलवाये । ___ कल्पवृक्षोंका सर्वथा अभाव हो गया । लोग कंद, मूल, फलादि खाने लगे । कालके प्रभावसे, शालि, गेहूँ, चने, आदि पदार्थ अपने आप ही उस समय उत्पन्न होने लगे। लोग उन्हें कच्चे ही, छिलकों सहित, खाने लगे। मगर वे हजम न होने लगे इस लिए एक दिन लोग प्रभुके पास गये । प्रभुने कहा-"तुम इनको छिलके निकालकर खाओ।" इस तरह कुछ दिन किया तो भी वे अच्छी तरह न पचने लगे, तब लोग फिर प्रभुके पास गये । प्रभुने कहा,-" छिलके निकालकर पहिले हाथोंमें मलो और फिर भिगोकर किसी पत्तेमें लो और खाओ।" ऐसा करनेसे भी जब वह नहीं पचने लगा, तब लोगोंने फिरसे जाकर प्रभुसे विनती की। प्रभुने कहा:" पूर्वोक्त विधि करने के बाद औषधिको (धान्यको) मुट्ठीमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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