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________________ श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन " एक दिन मैंने कहा: “ सेठ ! आप यह क्या करते हैं ? अपने अनेक विद्यार्थी हैं, वे यह काम कर लेंगे । " वेळजी सेठने हँसकर जवाब दिया :- " संचके जोड़े उठाना भाग्यसे मिलता है। संघ तो साक्षात् तीर्थ है । संघके जोडे उठाने में शर्म कैसी ? और हम लोगोंने तो स्वयंसेवक बनकर सेवाव्रत स्वीकार किया है। सेवात्रतीको, अमृक करूँ और अमूक न करूँ ? ऐसा कभी विचार भी नहीं करना चाहिए। सेवकका तो धर्म है कि जो काम उसके सामने आये उसको आनंद के साथ वह पूरा कर डाले । " 1 मैंने चुपचाप सिर झुका लिया। इनकी सेवा - भावना अनुकरणीय है । datt सेठ और इनके छोटे भाई जादवजी सेठ दोनों साथ ही रहते हैं । कारोबार और रहना सब साथ ही है । वेलजी सेठ जो कुछ करते हैं उन सबमें जादवजी सेठका सहकार रहता है। ये उदार भी पूरे हैं। इन भाइयोंने अब तक नीचे लिखी रकमें दानमें दीं हैं— ५०००० ) तिलक खराज्य फंडमें ( पचास हजार ) १७००० ) कच्छी वीसा ओसवाल जैन बोर्डिग माटुंगा में | १५०००) बाराई (कच्छ) में एक स्कूल खोला। इस स्कूल का प्रबंध येही करते हैं । आवश्यकता होने पर और खर्चा भी इसमें देते रहते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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