SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 841
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध) वगैरामें काम मी करने लगते थे। घास निकालते, मिट्टी हटाते कंकर चुनते और वाल्टी भर भरके पानी भी ले आते थे। अब देश और समाजके कामोंकी प्रवृत्ति बढ जानसे बोडिंगमें इतना समय नहीं दे सकते हैं तो भी प्रायः हमेशा बोर्डिगमें जाया करते हैं। माटुंगेमें मन् १९२८ में एक साधु महाराज का चौमासा था । महाराज प्रभावशाली थे । इसलिए हमारों लोग हमेशा खास करके पर्युषणों के दिनोंमें महाराजका व्याख्यान सुनने आते थे। आनेवाले लोगोंकी और उनके सामानकी व्यवस्था रखना जरूरी था। कई सजन यह काम करते थे। वेलजी सेठ सबके मुखिया थे। और चीजों के साथ जोडोंकी रक्षा करना भी जरूरी था। क्योंकि ऐसे मौकोंपर लोगोंके जूते कई बार खो जाया करते हैं। इसलिए जोड़े रखनेके लिए एक स्टेंड बनवाया गया। स्टेंडके खानोंके टिकिट बनवाये गये। जो सज्जन आते उनको अपने जने खानेमें रखनेको कहा जाता । लोग खानेमें अपने जोड़े रखते और टिकिट ले जाते । कई सज्जन ऐसे भी आते थे जो कहने पर ध्यान नहीं देते थे। वे अपने जोड़े बाहर ही डालकर चले जाते थे । कई बार मैंने देखा कि, वेलनी सेठ तुरंत बाहरसे उठाकर जोड़े स्टॅडमें रख देते थे और बाहर जोड़े डालफर जानेवाले सज्जनोंको टिकिट देते थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy