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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन १५३ wvoww मेरी भी एक दिन आई । उन्होंने लक्ष्मीदेवीसे कुशल समाचार पूछे । कुछ देर हिंदुस्थानके विषयकी बातें पूछी । फिर वे चली गई। इंग्लेंडसे ये अमेरिका गये । वहाँ सन १९२६ में अमोरिकाकी स्वाधीनताके एक सौ और पचासवें वर्षका फिलाडेलफियामें उत्सव हुआ था । उस मौके पर एक बहुत बड़ी प्रदर्शनी भी हुई थी । उस प्रदर्शनीमें इन्होंने भारतवर्षके प्रतिनिधिकी तरह काम किया और हाथी दांतके, छपाईके और बंधाईके कामोंके, भारतवर्षके ऐसे बढ़िया नमूने वहाँ रखे कि जिनसे प्रसन्न होकर वहाँकी जुरी ऑफ एवार्डस (jury of Awards) ने इन्हें, तीन सोनेके मेडल दिये और पीतलके कामके नमूनेके लिए भी Grand Prize Certificate. of Award. नामका एक सर्टिफिकेट दिया। ___ एक बात बड़ी महत्त्वकी हुई । लक्ष्मीदेवीसे वहाँके हिन्दुस्थानी और अमेरिकन सज्जनोंने कहा कि:-" आप यह खद्दरकी साड़ी उतार दीजिए और बढ़िया, बनारसी कामकी साड़ी पहनिए । आप भारतकी प्रतिनिधि हैं इसलिए आपको वस्त्र भी वैसे ही पहनने चाहिए।" देवीने जवाब दियाः-“प्रतिनिधि मैं हूँ। ये कपड़े नहीं। दूसरे भारतकी करोड़ों जनता ऐसे ही कपड़े पहनती हैं जैसे मैं पहने हूँ। इसलिए अगर मैं भारतको रिप्रजेंट करना चाहती हूँ, तो मेरे लिए यह जरूरी है कि, मैं वे ही वस्त्र पहनूं जिन्हें मैं हमेशा पहनती हूँ और जिन्हें गरीब भारतकी करोड़ों जनता पहनती है । भारतकी मुट्ठी भर जनता जैसे कपड़े पहनती है वैसे कपड़े भारतकी वर्तमान जनताके वास्तविक कपड़े नहीं हो सकते ।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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