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________________ १५२ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध) mmmmmmmmmm. शामको वापिस अपने रामबागके पासवाले मकानमें आईं। उस समय देवीका हृदय बैठा हुआ था । दिनभर विरुद्ध बातें सुनना । सहानुभूतिका एक लफ्ज भी सुननेको न मिलना । बड़ी ही भयंकर स्थिति है। ऐसी स्थितिसे गुजरनेवाले धन्य हैं। घर पहुँचते ही पतिने प्रसन्नतासे कहा:-" आज तुमने मेरा मनोरथ पूरा कर दिया ।" पतिकी प्रसन्नता देखकर देवीका हृदय आनंदसे उत्फुल्ल हो उठा । शहरमें बड़ी चर्चा चली । जिधर निकल जाओ उधर ही ईश्वरलालजीकी निंदा सुनाई देती थी । एक आदमी भी सहानुभूति बतानेवाला न था; परन्तु वाहरे बहादुर! अपनी भावनापर. दृढ रहा और राजपूतानेके लिए एक आदर्श खड़ा कर दिया। सन् १९२४ में ये सपत्नीक जवाहरातके धंदेके लिए विलायत गये । यहाँसे चले उस समय दोनों पतिपत्नो इंग्लिशका एक शब्द भी नहीं जानते थे । परन्तु इंग्लेंडमें जाकर इन प्रखर बुद्धि दम्पतिने इंग्लिशमें बात चीत करना भली प्रकार सीख लिया ।। __ अपनी कार्य दक्षताके कारण इन्होंने, वेम्बली (इंग्लंड) की सन् १९२५ की 'ब्रिटिश एम्पायर एग्जिबीशन' ( British Empire Exhibition) में भारतकी बढ़िया कारीगरीके नमूने रखे और वहाँके बोर्डने इन्हें एक सर्टिफिकेट और मेडल दिया। इस प्रदर्शनीके पेटून शाहन्शाह पंचमजार्ज और प्रिन्स ऑफ वेल्स थे । वे, ड्यूक और डचेस ऑफ यार्क, भारतमंत्री लॉर्ड बर्कनहेड और दूसरे अनेक महानुभाव इनके स्टॉलमें समय समय पर आये । भारतमंत्रीने और ड्यूक व डचेस ऑफ यार्कने स्टॉलमेंसे बहुतसा माल खरीदा। महारानी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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