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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन १४५ wwwmmmmmmmmmmmm महाराजकी छत्री बनवाई गई थी उसकी पादुका प्रतिष्ठा कराई गई। सं. १९९० के पोस वदि १ को इनकी गद्दीनशीनी हुई। उस दिन पुराने रिवाजके अनुसार उदयपुर स्टेटसे एक दुशाला आया था। इस मौके पर करीब ढाई हजार रुपये खर्च किये गये थे। ये बड़े ही उदार हृदयके सज्जन हैं । इन्होंने समय समयपर अनेक व्यक्तियोंको सहायता दी है । मुख्यतया विद्याध्ययनकर आगे बढ़नेवालोंको-विद्यार्थियोंको छात्रवृत्तियाँ दी हैं और अपने वसीलेका उपयोग कर दूसरोंसे दिलाई हैं। कई लोगोंने-जिनको इन्होंने कठिन वक्तमें रुपये दिये थे-रुपये वापिस भी नहीं लौटाये; मगर इन्होंने कभी उनको एक कड़वा वचन नहीं कहा । आ गये तो ठीक नहीं आये तो कुछ नहीं। __इन्होंने उदयपुरमें एक वर्द्धमान ज्ञानमंदिर नामक पुस्तकालय, एवं वर्द्धमान ज्ञानमंडली नामकी एक संस्था भी कायम की है। वर्द्धमान ज्ञानमंदिरमें करीब तीन हजारके जैनसूत्र, सिद्धांत, सामान्य ग्रंथ व इतर पुस्तकें हैं । इस ज्ञानमंदिरसे तीनों सम्प्रदायोंके साधु, श्रावक, एवं सामान्य जनता लाभ उठाते हैं। वर्द्धमान ज्ञानमंडली शहरसेवा और सामाजिक एवं धार्मिक सेवा करती है। इन्होंने अबतक नीचे लिखे स्थानोंमें प्रतिष्ठाएँ कराई हैं । ये सभी स्थान प्रायः मेवाड़में हैं। -. १. सिंगपुरा, सं० १९७९ में २. संगेसरा, सं० १९८० प्र. जेठ सुदि २ ३. मगरवाड़, सं० १९८१ जेठ सुदि १० 10 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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