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________________ १४६ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध ) ४. आसपुर, सं० १९८२ ५. चित्तौड़ तलहटी, सं० १९८३ महा सुदि १३ ६. करेड़ा, ५२ जिनालय - प्रतिष्ठा सं० १९८४ बेसाख सुदि ९ ७. चित्तौड़गढ़पर, सं० १९८५ महा सुदि १३ ८. कुशलगढ़, चरण - प्रतिष्ठा सं० १९८५ फागण वदि ५ ९. खमनोर, सं० १९८५ जेठ वदि ५ १०. भीलवाड़ा, चरण-प्रतिष्ठा सं० १९८६ बेसाख वदि ५ ११. नाथद्वारा, सं० १९८६ असाढ़ सुदि ५ १२. उदयपुर, वासुपूज्यजी महाराजके मंदिरमें, सं० १९८७ महा सुदि १० १३ पीतास, सं० १९८८ जेठ सुदि १० १९९१ वैशाख सुदि ३ १९९२ वैशाख सुदि १० १४. बागोल, सं० १९. दरीबा, सं० १६. चंगेड़ी । १७. बाटी । इनका स्वभाव सरल, उदार और स्वाभिमानी है । इनका जीवन सादा और भक्तिपरायण है । स्व० मूरबाई सेठ जेठा भाई माडणकी विधवा. इनका जन्म सं. १९१७ में हुआ था। इनके पिताका नाम मांडण शिवजी था । ये कच्छ सिंधोड़ीके रहनेवाले कच्छी दसा ओसवाल श्वेतांबर थे । मूरत्राईके लग्न सं. १९२८ में कच्छ सांधाणवाले सेठ जेठा भाई माडण के साथ हुआ था । सं. १९३४ में उनके एक I Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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