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________________ १४४ wimwww.mmmmwww जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध) मालिक करार देकर युवराज पद प्रदान किया। इस मौके पर करीब तीन हजार रुपये खर्च किये गये थे । ___ इसी अवसर पर अनूपचंद्रनी महाराजको इनकी धार्मिक और सामाजिक सेवाओंसे संतुष्ट होकर उदयपुरके जैनसंघने एवं प्रतापसभाने मानपत्र दिये थे । इसी मौकेपर अठाई महोत्सव किया गया था । बड़ी शानसे जुलूस निकला था। उसमें निशान, हाथी, और बेंड सरकारको तरफसे आये थे। सं० १९९० में गुलाबचंद्रजी महाराज कालधर्मको प्राप्त हुए । तब अनूपचंद्रजी महाराजने उनको, बढिया डोलमें बिठाकर उनकी स्मशानयात्रा कराई। इनको दागमें शहरके बड़े बड़े रईस भी गये थे । करीब सात सौ दागिये शामिल हुए थे । अनूपचंद्रनी महारानने एक साहसका कार्य किया । ऐसे मौकों पर भंगियोंको फूली, पैसे और चांदीके फूल लुटाते जाते हैं । भंगी बुरी तरहसे बाँसोंसे पीटे भी जाते हैं। अनूपचंद्रनी महाराजने कहाः-" भंगियोंको जो कुछ लुटाना हो यहीं लुटा दो। विचारे भगियोंको, देना और फिर बाँसोंसे पीटना बुरा है। यह बुराई मैं अपने गुरुजीके डोलके साथ बिल्कुल नहीं होने दूंगा। यद्यपि लोग इस पुराने रिवाजको तोड़नेके खिलाफ थे मगर इनकी दृढताके सामने वह बुराई न होने पाई। फिर सं० १९९० के मार्गशीर्ष सुदि १५ को गुलाबचंद्रजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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