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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन १४३ रईस उनके पास पढ़े थे । उनमेंसे धा भाईनी अमरसिंहजी और फतहलालजी एवं श्रीयुत चंद्रनाथजी हाकिम सहाड़ा, और मथुरानाथजी हाकिम देवस्थान आदि अभी मौजूद हैं। स. १९५२ में लछमीलालजी महाराजका देहांत हो गया। उनके बाद यति श्रीगुलाबचंद्रजीके शिष्य रतनचंद्रजीको पीपलीवाले उपाश्रयमें देखरेख करनेके लिए रखा । उन्होंने अनूपचंद्र जीको बहुत दुःख दिया । इसलिए गुलाबचंद्रजी महाराजने इनको अपने पास बुला कर रख लिया । धीरे धीरे रतनलालजीने गुपचुप पीपलीवाले उपाश्रयका सारा माल असबाब और ग्रंथ-संग्रह बेच दिया । गुलाबचंद्रजी महाराजको जब यह खबर लगी तब उन्होंने रतनलालजीको उपाश्रयसे निकाल दिया । सं० १९५७ के मार्गशीर्ष सुदि ४ के दिन इनको यति दीक्षा दी गई । दीक्षा लेनेके कुछ बरस बाद ये कभी पीपलीवाले उपाश्रयमें और कभी कसेरोंकी ओलके उपाश्रयमें रहते थे । ये कुछ बरस स्वर्गीय श्रीपूज्यजी महाराज श्रीनृपतिचंद्रसूरिजीके पास भी रहे थे । सूरिजीने इनको बहुत अच्छी तरहसे पढ़ा लिखाकर होशियार किया । यति श्रीगुलाबचंद्रजी महाराजके कोई शिष्य नहीं रहा था इसलिए सं० १९६९ में उन्होंने अनूपचंद्रजीको अपने उपाश्रयका भी, उत्तराधिकारी बना दिया। फिर सं० १९८७ में उन्होंने अनूपचंद्रजीको धूमधामसे बड़ी दीक्षा दी और अपनी गद्दोका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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