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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन १३७ बामारी थी। उसने अनेक इलाज कराये और लाखों रुपये खर्चे परन्तु बीमारी नहीं मिटी। राजाने जब नगराजजी महाराजके आनेकी बात सुनी तब उन्हें बुलाया और अपनी बीमारीका हाल कहा व प्रार्थना की,-" आप मेरा रोग मिटा दीजिए।" नगराजजी महाराजने कहा:-" में दवादारु नहीं करता। मगर गुरुदेवकी कृपा होगी तो किसी दिन आपका यह रोग मिट जायगा।" ___एक महीनेके बाद महाराज दर्बारमें गये और सँघनीकी डिब्बी निकाल कर सूंघनो सँघने लगे। राजाको कहाः-" आप भी संघिए ।" राजाने सूंघनी संघी। थोड़ी देरके बाद राजा बोले:“ क्षमा कीजिए । मैं पेशाब करके आता हूँ।" राजा पेशाब करने गये तो उन्हें कोई तकलीफ नहीं हुई। पेशाब साफ आया। वे वापिस आकर बोले:-" महाराज ! आपने सँघनीमें कोई दवा दी थी ?" _महाराजने जवाब दियाः-" नहीं, आज गुरुदेवकी कृपा हुई है । अबसे आपका रोग गया समझिए ।" ___दस दिनके बाद राजा महाराज जहाँ ठहरे थे वहाँ आये और बोले:-" उपकारी पूज्य ! आपने मेरा बरसोंका ऐसा दुःखदायक रोग मिटा दिया है जो लाखों रुपये खर्चनेसे भी नहीं मिटा था। मैं आपकी क्या सेवा करूँ ? मैं इस उपकारका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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