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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन विनती की थी; परन्तु आपको जैसलमेर प्रतिष्ठा कराने जाना था, इसलिए आप वहाँ चौमासा न कर सके। वहाँसे विहार कर आप जैसलमेर पधारे । वहाँ पटवोंके प्रसिद्ध खानदानके सेठ संघवी हिम्मतरामजीने संघ सहित आपका बड़े समारोहके साथ सामेला किया । इनके बनवाये हुए अमरसरके मंदिरकी प्रतिष्ठा कराई । संघवीजीकी आप पर बड़ी भक्ति थी और इसीलिए उन्होंने आग्रहपूर्वक आपके छ: चौमासे जैसलमेरमें कराये थे। सं० १९४० में आपने ब्यावरके श्रीसंघके बनवाये हुए मंदिर व दादासाहिबकी पादुकाकी प्रतिष्ठा कराई थी। जयपुरमें बांठियोंके मंदिरकी, प्रतिष्ठा भी, पायछंद गच्छके श्रीपूज्यजीके साथ मिलकर सं० १९४३ में कराई थी । रतलाममें सेठ सोभागमलजी व चाँदनमलजीने मंदिर बनवाया था। उस मंदिरकी प्रतिष्ठा सं० १९५२ में आपने करवाई थी। मंदिरके पास ही दादाबाड़ी बनी हुई है। उसमें जिनदत्तसूरि महाराजकी मूति स्थापित की है और उसके एक तरफ जिनकुशलसूरि महाराज और दूसरी तरफ जिनचंद्रसूरि महाराजकी चरण पादुकाएँ हैं। आहोर ( गोरवाड ) में सं० १९५५ फाल्गुन वदि ५ को अंजन शलाखा करवाई थी। इस समय आप बहुत बीमार थे; परन्तु श्रावकोंके अति आग्रहसे प्रतिष्ठा कराने जयपुरसे आहोर गये थे । प्रतिष्ठा निर्विघ्न समाप्त हुई और फाल्गुन वदि १२ को वहीं आपका स्वर्गवास हो गया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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