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________________ १३० जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध ) जिनचंदमूरिजी आपका गृहस्थ नाम रतनलाल पिताका नाम पुरुषोत्तमजी माता चौथांबाई । जन्म सं० १९३१ गाँव पालीमें हुआ था । जातिके ओसवाल वेद मूथा गोत्र । आपने दीक्षा सं० १९५० के फाल्गुन वदि २ को ली थी। नाम रत्नोदयगणि रक्खा गया । आप मुक्तिसूरिजीके पाटवी शिष्य हुए । आपने उपाश्रयहीमें संस्कृत और धर्मशास्त्रोंका अध्ययन किया। आप अपने गुरु महाराजके परमभक्त थे । गुरुकी बड़ी सेवा की थी। मुक्तिसरि महाराजका स्वर्गवास होने पर आपको जयपुरके श्रीसंघने सं० १९५६ के बैसाख सुदी १५ को गद्दी पर बिठाकर सूरिपद दिया और आप जिनचंदमूरिजीके नामसे प्रसिद्ध हुए । जयपुर में पंचायती मंदिरमें, सेठ पूनमचंदजी कोठारीने एक देहरी बनवाई थी। उसमें प्रतिमा स्थापन कर आपने सं० १९५८ में प्रतिष्ठा कराई । सं० १९७६ ज्येष्ठ सुदी ३ के दिन आपने बाडमेरके श्रीसंघके बनवाये हुए आदिनाथजीके मंदिरमें प्रतिष्ठा कराई। जयपुर राज्यान्तरगत बडखेडा गाँवमें एक आदीश्वरजीका प्राचीन मंदिर था; परन्तु वह बहुत जीर्ण हो गया था। इसलिए श्रावकोंको उपदेश देकर उसका जीर्णोद्धार कराया और तब सं० १९८४ के फाल्गुन सुदी २ को उसकी प्रतिष्ठा कराई । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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