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________________ ૨૮ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध ) हँसकर अपनी गद्दीके नीचेसे कागज़ निकाल कर दिया और कहाः-" सवाल और जवाब दोनों देख लीजिए । " महाराजा रामसिंहनी देखकर आश्चर्यान्वित हुए । महाराजने कहाः-" आगे प्रयत्नको सफल बनाना हमारे जिम्मे रहा । " महाराजा राम सिंहनी यह कहकर चले गये कि आपके किये ही यह होगा।" फिर जो काम था वह सिद्ध हो गया। इससे महाराजा रामसिंहनी बड़े प्रसन्न हुए और आपको अपना गुरु मानकर एक ढाई हजारका — ढिंगारिया भीम' नामका गाँव दानमें दिया और पालखी, चँवर, छड़ी और पैरोंमें पहनने के लिए सोना और दुशाला ओढाकर पाँच सौ रुपये भेट किये व लवाजमेंके साथ आपको पालखीमें बिठाकर उपाश्रय रवाना किया । ____ महाराजा रामसिंहनीको शिकारका बड़ा शौक था; परन्तु आपके उपदेशसे उन्होंने यह शोक छोड़ दिया । और इस तरह आपने हिंसा करनेसे उन्हें रोका। यहाँसे एक बार आप विहार करके जोधपुर पधारे । वहाँ श्रावकोंने धूमधामके साथ आपकी पधरामणी की। यह बात संवत १९२८ की है । उस समय वहाँ महाराजा तखतसिंहजी राज्य करते थे। उन्होंने भी आसोपा व्यास भानीरामजीकी मार्फत आपको मिलने बुलाया और आपकी असवानीके लिए अपना लवाजमा-हाथी, घोड़े, नगारा, निशान आदि-भेजा। आपसे जोधपुरहीमें चौमासा करनेकी भी महाराजा तख्तसिंहजीने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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