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________________ १२६ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध ) वालोंकी गद्दीको मानते थे, इसलिए जयपुरके श्रावकोंने इनका कुछ आवआदर नहीं किया । अपने गुरुके मुँहसे आपने यह बात सुनी और निश्चय किया कि, मैं जाकर जयपुरमें अपनी गद्दी स्थापित करूँगा और मेरे गुरुका अपमान करनेवालोंसे पूरा बदला लूँगा । तद्नुसार आप जयपुर में आये । यहाँ पटवावालों के मुनीम श्रीयुत चाँदनमलजी गोलेछा दो तीन अन्य श्रावकोंकी महायता से महाराजको स्वागत करके शहर में लाये । महाराजने यद्यपि अपने प्रभावसे अनेकोंको अपना भक्त बना लिया; परन्तु बीकानेरकी गद्दीको माननेवाले कुछ श्रावकों और साधुओंन आपको उपेक्षा से ही देखा । पहले आप जब जैसलमेर से फलौधी पधारते थे तबकी बात । रास्ते में पोकरण गाँवक पास होकर आरहे थे । वहाँ उन्होंने पोकरण ठाकुरके कुमारको हिरण पर गोली चलानेके लिए उद्यत देखा । आपने कहा:-" मत चलाओ। " जब कुमार ने ध्यान नहीं दिया, तब महाराजने उसकी बंदूकका मुँह बंद कर दिया । तब तो वह आपके चरणोंमें गिरा और अपने गाँवमें ले जाकर आपकी बड़ी भक्ति की । वहाँ फतहसिंहजी चाँपावतको आपने फर्मायाः - " एक बरसमें तुम अच्छे ओहदे पर पहुँचोगे । तदनुसार वे जयपुर में जयपुरके दीवान ( Prime minister ) हो गये थे । वे आकर आपके पैरों पड़े। उन्होंने महाराजा रामसिंहजीसे आपकी तारीफ की। उन्होंने आपको मिलने बुलाया । 39 I Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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