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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन १२५ मुक्तिमूरिजी महाराज आपका जन्म सं. १८८७ फाल्गुन कृष्णा ९ के दिन काछी बडोदा ( मालवे ) में हआ था। आपका जन्म नाम मूलचंद, पिता खेमचंद, माता चैनादेवी, ओसवाल, सालेचा मोहता । आपने दीक्षा स. १९०७ के फाल्गुन शुक्ला ७ के दिन सम्मेतसिखरजी पर ली थी। दीक्षा नाम महिमा कीर्ति. और गुरु महेन्द्रमरिजी था। ___ आप, सं. १९१५ ज्ये. शु. १२ सोमवारके दिन गद्दी नशीन हुए । आपने काशीमें रह कर यति बालचंद्रजीके पास विद्याध्ययन किया था । संस्कृत और धर्मशास्त्रोंके बड़े विद्वान थे । वहाँ आपने मंत्र यंत्रादिककी भी बहुत साधना की और लोगों में अपनी धाक जमाई । वहाँसे ग्रामानुग्राम विहार करते हुए आप कोटे पधारे और बंदीमें पटवोंके मंदिरमें आपने सं. १९२० के सालमें प्रतिष्ठा कराई । वहाँसे विहार करके जयपुर पधारे । यहाँ लोगोंमें आपकी प्रतिभाका बड़ा प्रभाव पड़ा। आपके यहाँ आनेका मुख्य कारण यह था कि आपके गुरु श्रीमान महेन्द्रसूरिजी महाराज जयपुर पधारे थे; परन्तु चूंकि ये जयसेलमेरकी गद्दीवाले थे और यहाँक श्रावक सभी बीकानेर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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