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________________ mmmmmmmmmmmmmmmmm जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध) सब बाहर कर दिया। परंतु और स्थानोंके संघने इन्हें संघ बाहर नहीं किया। इसके बाद एक साल तक इन्होंने जैनसाहित्यसंशोधन नामक त्रिमासिक पत्रमें काम किया। यह पत्र पूनेसे निकलता था और मुनिश्री जिनविजयजी महाराज इसके संपादक थे । अहमदाबादमें महात्मा गाँधीने गुजरात पुरातत्त्व मंदिर' नामकी एक संस्था कायम की थी। ये वहाँ काम करने चले गये। इन्होंने कोलंबोंके । विद्यालंकार परिवेण ' ( विद्यालंकार कॉलेज ) में जाकर पाली भाषाका अध्ययन किया था । उस समय इनके साथ महामहोपाध्याय सतीशचंद्र विद्याभूषण एम. ए. पी. एच. डी. और पं० हरगोविंददासजी भी वहाँ पालीका अध्ययन करते थे। आठ महीनेमें इन्होंने पाली भाषामें प्रवीणता प्राप्त की । वहाँके महास्थविर ( प्रिन्सिपाल ) सुमंगलाचार्यने परीक्षा लेकर इन्हें सर्टिफिकेट दिया था। अहमदाबादमें पुरातत्त्व मंदिरके कामके साथ ही इन्होंने 'गुजरात विद्यापीठ ' में 'प्राकृत ' 'पाली ' आदि प्राचीन भाषाओंके अध्यापनका काम भी स्वीकार किया। यह काम ये सं० १९३२ के सत्याग्रह-आन्दोलन तक करते रहे । आन्दोलनमें ये पकड़े गये । जब जेलसे छूटे तब इनको ब्रिटिश हदसे निकल जानेका हक्म हआ। अब ये अपने गाँवमें बैठे हैं। इस समय इनकी आखें भी खराब हो गई हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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