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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन कार प्रकाशित कराया गया । इससे सारे जैनसमाजमें तहलका मच गया। यह व्याख्यान जैनधर्मको हानि पहुँचानेवाला समझा गया और इसके विरुद्ध समाचार पत्रोंमें अनेक लेख लिखे गये । 'बेचरहितशिक्षा' नामकी एक पुस्तक भी प्रकाशित्त कराई गई। विचारस्वातंत्र्यके इस जमानेमें जैनसमाजका यह आन्दोलन इन्हें असहिष्णुता मालूम हुआ। महावीर जैनविद्यालयमें भी ये उस समय तत्वार्थसूत्रकी टीका लिखनेका कार्य करते थे । इस कामसे इन्होंने त्यागपत्र-राजीनामा दे दिया। यद्यपि महावीर जैनविद्यालयकी कमेटीने यह त्यागपत्र स्वीकार नहीं किया; परंतु विद्यालयके सेक्रेटरी श्रीयुत मोतीचंद गिरधरदास कापड़ियाने इनसे कहा,-" अगर आप यहाँसे चले जायँ तो अच्छा हो । यदि आप यहाँ रहगे तो संस्थाको हानि होगी। " इसलिए इन्होंने संस्था छोड़ दी। अहमदाबाद के नगरसेठ कस्तरभाई मणिभाई ने अहमदाबाद जैनसंघकी तरफसे इनको नोटिस दिया कि तुम पन्द्रह दिनके अंदर आकर संघसे अपने विचारोंके लिए माफी माँगो, नहीं तो संघबाहर कर दिये जाओगे । ____ इन्होंने अध्ययन और मननके पश्चात जो बिचार प्रकट किये थे उनके लिए माफी मांगनेका कोई उचित कारण नहीं देखा इसलिए ये चुप रहे और अहमदाबादके संघने इनको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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