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________________ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन सेठ राजमलजी सुराणा इनके पिताका नाम भूरामलजी था । ये जातिके ओसवाल और सुराणा गोत्रीय श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन हैं। जवाहरातका रोजगार करते हैं। इनके पूर्वज दिल्ली रहते थे, वहींसे इनके दादा जयपुर में आकर जवाहरातका धंधा करने लगे। इनका जन्म सं० १९६४ के भादवा वदि २ को हुआ था। और इनकी शादीमें इनके पितान करीब पैंतालीस हजार रुपये खरच किये थे । इनके दो पुत्रियाँ हैं। एकका नाम जतनवाई और दूसरीका रतनबाई । दोनों हिन्दी पढ़ी हुई हैं। सेठानीजी पढ़ी लिखीं हैं। राजमलजीको हिन्दी और इंग्लिशका साधारण ठीक ज्ञान है । सुधारक विचारोंकी तरफ झुकाव है। सं० १९७७ में इनके पिताका स्वर्गवास हो गया। उस समय लोगोंने वहत जोर दिया कि उनका कऱ्यावर ( नुकता) किया जाय; परंतु इन्होंने किसीकी बात न मानी। “ नुकता करना हानिकारक है। मैं कभी न करूँगा।” यह वात जितनं इन्हें समझाने आये उनको दृढ़ता पूर्वक कह दी। जयपुरकी जनानी ड्योढी पर जो जवाहरात खरीदा जाता था वह इनके पिता भूरामलजीकी मार्फत या उन्हींसे खरीदा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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