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________________ १०२ जैनरत्न ( उत्तरार्द्ध ) जाता था । जयपुरके प्रायः जागीरदार भी उन्हींसे या उन्हीं की मार्फत जवाहरात खरीदते थे । वह व्यवहार अब भी प्रायः चालू है । इनके यहाँ जवाहरातका धंधा ही होता है और नहीं । इनकी फर्म भूरामल राजमल सुराणा के नाम से प्रसिद्ध है ! यह फर्म जड़ाऊ काम करनेमें खास तरहसे प्रसिद्ध है । इनका माल । हिन्दुस्थानके अलावा इंग्लेंड अमेरिका आदि विदेशोंमें भी जाता है । यह फर्म हमेशा सच्चे जवाहरातहीका धंधा करती है । इमिटेशनका नहीं करती । सेठ राजमलजी अच्छे सुधारक, उत्साही और कर्मशील सज्जन हैं । पं० शिवजी देवसिंह शिवजीभाईका जन्म संवत १९३६ के वैशाख वदि ९ को हुआ था । इनके पिताका नाम श्रीयुत देवसिंहजी और माताका नाम श्रीमती वेमुबाई था । ये जातिके कच्छी दसाओसवाल और गोत्रके लापसिया हैं । ये मूर्तिपूजक श्वेतांबर जैनधर्मका पालन करते हैं । ये खास गांव नलिया ( कच्छ ) के रहनेवाले और अभी गाँव मढडा ( काठियावाड़) में रहते हैं । I Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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