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________________ ३८ जैन-रत्न भगवान आदिनाथके जीवकी जबसे मुख्यतया उत्क्रांति होनी प्रारंभ हुई तबसे लेकर आदिनाथ तककी स्थितिका वर्णन संक्षेपमें यहाँ देदेनेसे पाठकोंको इस बातका ज्ञान होगा कि जीव कैसे उत्तम कर्मों और उत्तम भावनाओंसे ऊँचा उठता जाता है; आत्माभिमुख होता जाता है ।। प्रथम भव-क्षितिप्रतिष्ठ नगरमें 'धन' नामक एक साहूकार रहता था। उसके पास अतुल सम्पत्ति थी । एक बार उसने अपने यहाँसे अनेक प्रकारके पदार्थ लेकर वसन्तपुर नामके नगरको जानेका विचार किया। उसके साथ दूसरे व्यापारी तथा अन्य लोग भी जाकर लाभ उठा सकें इस हेतुसे उसने सारे नगरमें ढिंढोरा पिटवा दिया। यह भी कहला दिया कि, साथ जानेवालोंका खर्चा सेठ देगा । सैकड़ों लोग साथ जानेको तैयार हुए । धर्मघोष नामके आचार्य भी अपनेसाधु-मंडल सहित उसके साथ चले। ___ कई दिनके बाद मार्गमें जाते हुए साहूकारका पड़ाव एक जंगलमें पड़ा । वर्षाऋतुके कारण इतनी बारिश हुई कि वहाँसे चलना भारी हो गया । कई दिन तक पड़ाव वहीं रहा । जंगलमें पड़े रहनेके कारण लोगोंके पासका खाना-पीना समाप्त हो गया । लोग बड़ा कष्ट भोगने लगे। सबसे ज्यादा दुःख साधुओंको था क्योंकि निरन्तर जल-वर्षाके कारण उन्हें दो दो तीन तीन दिन तक अन्न-जल नहीं मिलता था । एक दिन साहूकारको खयाल आया कि, मैंने साधुओंको साथ लाकर उनकी खबर न ली। वह तत्काल ही उनके पास गया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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