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________________ नीर्थंकर चरित-भूमिका ३१-जल-स्थलमें उद्भूत पाँच वर्णवाले सचित्त फूलोंकी, घुटने तक आ जायँ इतनी, दृष्टि होती है। ३२-केश, रोम, डाढी, मुंछ, और नाखुन ( दीक्षा लेनेके बाद ) बढ़ते नहीं हैं। ३३-कमसे कम चार निकायके एक करोड़ देवता पासमें रहते हैं। ३४-सर्व ऋतुएँ अनुकूल रहती हैं। इनमेंसे प्रारंभके चार (१-४) अतिशय जन्महीसे होते हैं इस लिये वे स्वाभाविक-सहजातिशय या मूलातिशय कहलाते हैं। फिर ग्यारह (५.१५) अतिशय केवलज्ञान होनेके बाद उत्पन्न होते हैं । ये 'कर्मक्षयजातिशय' कहलाते हैं । इनमेंके सात (६-१२) उपद्रव, तीर्थकर विहार करते हैं, तब भी नहीं होते हैं यानी विहारमें भी इनका प्रभाव वैसा ही रहता है । ___ अवशेष उन्नीस ( १६-३४ ) देवता करते हैं। इसलिए वे "देवकृतातिशय' कहलाते हैं। ऊपर जिन अतिशयोंका वर्णन किया गया है उनको शास्त्रकारोंने संक्षेपमें चार भागोंमें विभक्त कर दिया है। जैसे-(१) अपायापगमातिशय (२) ज्ञानातिशय (३) पूजातिशय और (४) वचनातिशय । १-जिनसे उपद्रवोंका नाश होता है उन्हें 'अपायापगमातिशय' कहते हैं । ये दो प्रकारके होते हैं । स्वाश्रयी और पराश्रयी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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