SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 649
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० जनरत्न ( उत्तरार्द्ध ) रक्खा । होरजीभाईका जन्म जिस वर्षमें हुआ उस वर्षमें सोमपाल खेतसिंहकी कंपनीको खूब नफा हुआ, इसलिए खेत सिंह माईके सभी बंधुओंका विचार हुआ कि, यह लड़का भाग्यशाली है । अगर इसके नामसे धंधा शुरू किया जायगा तो हमको नफा होगा । इसलिए उसी साल यानी सं० १९४४ में ' हीरजी खेतसिंह ' की कंपनी के नामसे रोजगार शुरू किया । इस कंपनीके शुरू होनेके बादसे खेतसिंह सेठने करोड़ों कमाये और गुमाये भी । I लक्ष्मी बहती गंगा है । इसका जो जितना सदुपयोग कर लेता है उतना ही वह नफा उठाता है । यानी धर्म - पुण्यमें जितना खर्च कर लेता है वही उसके खाते में जमा होता है । बाकी सब व्यर्थ । खेतसिंह सेठने जितना दानपुण्य किया उसका ब्योरा नीचे दिया जाता है । १२०००००) बारह लाख रुपयेके करीब सं० १९५५ से सं० १९७७ तक यानी उनकी मृत्यु हुई उसके पहले तक कच्छ, काठियावाड़ और गुजरात में दुष्काल पड़े उन मौकों पर गरीबोंको अन्नवस्त्र देनेमें और पशुओंको खास खिलाने में खर्चे। इनके अलावा १०००००) जिन-मंदिरोंका जीर्णोद्धार कराने में । १०००००) धर्मशालाएँ वगैरा बँधवाने में । १०००००) जीवदया फंडों और पांजरापोलो में | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy