SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 601
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-रत्न ~~~~~~~~~~~~~ ~~~~~~~~mmmmmmmmmmmmmm भावार्थ-मध्यस्य महर्षि कहते हैं कि, अद्वैतवाद वस्तुस्वरूपकी दृष्टि से नहीं बताया गया है, किन्तु समभाव-प्राप्तिके लिए बताया गया है । इस तरह जैन महात्माओंका, अन्य दर्शनोंकी तटस्थदृष्टिसे परीक्षा करना; उनका समन्वय करनेके लिए दृष्टि फैलाना, और शुद्धदृष्टिसे पूर्वापरका विचार करना कि, जैनेतर दर्शनोंके सिद्धान्त जैनसिद्धान्तोंके साथ कैसे मिलते हैं ! जैनक्षेत्रकी-जैनदृष्टिको कम महत्ता नहीं है। ___ अन्यदर्शनोंके धुरंधरोंका 'महर्षि । 'महामति । और इसी प्रकारके दूसरे ऊँचे शब्दोंसे अपने ग्रंथों में, उल्लेख करना और तुच्छ अभिप्रायवालोंके मतका खंडन करते हुए भी उनके लिए हलके शब्दोंका व्यवहार न करना जैनमहापुरुषोंके उदार आशयका प्रमाण है। धार्मिक वाद-युद्धके प्रसंगमें भी विरुद्ध दर्शनवालोंकी ओर प्रेमदृष्टिसे देखना और तदनुसार ही व्यवहार करना कितनी सात्त्विकता है? देखिए ! जैनाचार्योंके माध्यस्थ्य-पूर्ण उद्गार" भवबीजाकरजनना रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो निनो वा नमस्तस्मै" ॥ -हेमचंद्राचार्य । " नाशाम्बरत्वे न सिताम्बरत्वे न तर्कवादे न च तत्त्ववादे । न पक्षसेवाऽऽश्रयणेन मुक्तिः कषायमुक्तिः किल मुक्तिरेव"॥ -उपदेशतरंगिणी। " पक्षपातो न मे वीरे न द्वेषः कपिलादिषु । युक्तिमद् वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः ॥ -हरिभद्रसूरि । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy