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________________ जैन-दर्शन भावार्थ-इस तरह (प्रकृतिवादका जो वास्तविक रहस्य बताया गया है उसके अनुसार ) प्रकृतिवादको यथार्य ही जानना चाहिए । अलावा इसके वह कपिलका उपदेश है, इसलिए सत्य है; क्योंकि वे दिव्यज्ञानी महामुनि थे। ___ आगे उन्होंने क्षणिकवाद और विज्ञानवादकी आलोचना की है। उनमें कहाँ कहाँ दोष हैं सो बताये हैं और अन्तमें इस तरह वस्तुस्थितिका कथन किया है: "अन्ये त्वभिदधत्येवमेतदास्थानिवृत्तये । क्षणिकं सर्वमेवेति बुद्धेनोक्तं न तत्त्वतः"॥ "विज्ञानमात्रमप्येवं बाह्यसंगनिवृत्तये । विनेयान् कांश्चिदाश्रित्य यद्वा तद्देशनार्हतः" ॥ " एवं च शून्यवादोपि सद्विनेयानुगुण्यतः । अभिप्रायत इत्युक्तो लक्ष्यते तत्त्ववेदिना" ॥ भावार्थ-मध्यस्थ पुरुषोंका कथन है, कि बुद्धने क्षणिकवाद परमार्थदृष्टिसे-वस्तुस्थितिको देखकर नहीं कहा है, बल्के मोहवास. नाको दूर करनेके लिए कहा है । विज्ञानवाद भी वैसे शिष्योंको लक्ष्य करके अथवा विषय-संगको दूर करनेके लिए बताया गया है। ऐसा जान पड़ता है कि, बुद्धने शून्यवाद भी योग्यशिष्योंको लक्ष्यमें रखकर वैराग्यकी पुष्टि करनेके आशयसे बताया है। वेदान्तके अद्वैतवादकी वेदान्तानुयायी विद्वानोंने जो विवेचना की है, उसमें दोष बताकर आचार्य महाराज कहते हैं कि: " अन्ये व्याख्यानयन्त्येवं समभावप्रसिद्धये । अद्वैतदेशना शास्त्रे निर्दिष्टा न तु तत्त्वतः" ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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