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________________ जैन-दर्शन ५६१ माला, जंजीर कड़े, अंगूठी आदि पदार्थोंमें परिवर्तन होता रहता है। इस, अनित्यत्वको परिवर्तन होने जितना ही समझना चाहिए, क्योंकि सर्वथा नाश या सर्वथा अपूर्व उत्पाद किसी वस्तुका कमी नहीं होता है। __ प्रकारान्तरसे नयके सात भेद बताये गये हैं। नैगम् संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवम्भूत। नैगम-'निगम' का अर्थ है संकल्प-कल्पना । इस कल्पनासे जो वस्तुव्यवहार होता है वह नैगमनय कहलाता है । यह नय तीन प्रकारका होता है,- भूत नैगम भविष्यद् नैगम' और ' वर्तमान नैगम' । जो वस्तु हो चुकी है उसको वर्तमानरूपमें व्यवहार करना ‘भूत नैगम' है। जैसे-आज वही दीवालीका दिन है कि जिस दिन महावीर स्वामी मोक्षमें गये थे।" यह भूतकालका वर्तमानमें उपचार है । महावीरके निर्वाणका दिन आज (आज दीवालीका दिन ) मान लिया जाता है । इस तरह भूतकालके वर्तमानमें उपचारके अनेक उदाहरण हैं । होनेवाली वस्तुको हुई कहना ' भविष्यद नैगम' है । जैसे चावल पूरे पके न हों, पक जानेमें थोड़ी ही देर रही हो, उस समय कहा जाता है कि " चावल पक गये हैं।" ऐसा वाक्यव्यवहार प्रचलित है। अथवा-अर्हन् देवको मुक्त होनेके पहिले ही, कहा जाता है कि मुक्त हो गये। यह 'भविष्यदू नैगमनय' है। ईंधन, पानी आदि चावल पकानेका सामान इकट्ठा करते हुए मनुष्यको कोई पूछे कि क्या करते हो? १ अर्तीतस्य वर्तमानवत् कथनं यत्र स भूतनैगमः । यथा-" तदेवाऽय दीपोत्सवपर्व यस्मिन् वर्द्धमानस्वामी मोक्षं गतवान् " -नयप्रदीप, यशोविजयजी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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