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________________ ५३८ जैन-रत्न .........maravammarnew.www.www.www.ww~~ हेतुमें अनुमेय वस्तुकी व्याप्ति रहनेका स्मरण होता है तब ही किसी वस्तुका अनुमान हो सकता है। __ जैसे-किसी मनुष्यको किसी स्थानमें धूम-रेखा देखनेसे और उस धूममें अग्निकी व्याप्ति होनेका स्मरण आनेसे, उसके हृदयमें तत्काल ही उस स्थानमें अग्नि होनेका अनुमान स्फुरित होता है । इस अनुमान-स्फूर्तिमें, जैसा कि हम ऊपर कह आये हैं, हेतुका दर्शन और हेतुमें साध्यको व्याप्ति होनेका स्मरण दोनों मौजद हैं। इन दोनोंमेंसे यदि एकका भी अभाव होता है तो अनुमान नहीं होता है। ___ हेतु ' ' साध्य ' ' अनुमेय' आदि सब संस्कृत शब्द हैं। " हेतु "का अर्थ है-साध्यको सिद्ध करनेवाली वस्तु । जैसे, ऊपर उदाहरणमें बताया गया है 'धूम्र '-साध्यसे कभी कहीं अलग न रहना। यह हेतुका लक्षण है। ' हेतु को 'साधन' भी कहते हैं। लिंग' भी साधनका ही नामान्तर है। जिप्त वस्तुका अनुमान करना होता है उसको 'साध्य' कहते हैं । जैसे पूर्वोक्त उदाहरणमें 'अग्नि' बताया गया है । ' अनुमेय ' साध्यका नामांतर है। __ दूसरोंके समझाये विना अपनी ही बुद्धिसे · हेतु' द्वारा जो अनुमान किया जाता है उसे ' स्वार्थानुमान' कहते हैं। दूसरेको समझानेमें अनुमानका प्रयोग करना ‘परार्थानुमान' है। जैसे–यहाँ अग्नि है; क्योंकि यहाँ धूम्र दिखाई देता है। जहाँ धूम्र होता है वहाँ अग्नि अवश्यमेव होती है । हम देखते हैं कि रसोई-घरमें अग्नि होनेसे धूआँ जरूर होता है। यहाँ धूम्र दिखाई दे रहा है इसलिए यहाँ अग्नि भी अवश्यमेव होगी। प्रतिज्ञा, हेतु, उदा १--" साधनात् साध्यविज्ञानमनुमानं विदुर्बुधाः।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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