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________________ जैन- दर्शन " सकता है । शब्दों में कहो तो धूम्रस्थ अग्निके साथ रहनेका निश्चल नियम तर्क' हीसे साबित हो इस नियमको तर्कशास्त्री लोग ' व्याप्ति ' कहते हैं । यह बात तो स्पष्ट ही है कि, धूम्र में जब तक व्याप्तिका निश्चय नहीं होता है, तब तक धूम्र को देखने पर भी अग्निका अनुमान नहीं हो सकता है । जिस मनुष्यने धूम्र में अग्निकी व्याप्तिका निश्चय किया है, वही धूम्रको देखकर, वहाँ अग्नि होनेका ठीक ठीक अनुमान कर सकता है । इससे सिद्ध होता है कि अनुमान के लिए व्याप्तिनिश्चय करनेकी आवश्यकता है और व्याप्तिनिश्चय करनेके लिए ' तके ' की जरूरत है । दो पदार्थ, अनेक स्थानोंमें एक ही जगह देखनेसे इनका व्याप्तिनियम सिद्ध नहीं होता है । परंतु इन दोनों के भिन्न रहने में क्या बाधा है, इसकी जाँच करने पर जब बाधा सिद्ध होती है, तभी इन दोनोंका व्याप्तिनियम सिद्ध होता है । इस तरह दो पदार्थोंके साहचर्यकी परीक्षा करनेका जो अध्यवसाय है उसे 'तर्क' कहते हैं । धूम्र और अग्निके संबंध में भी - " यदि अग्नि विना धूम्र होगा, तो वह अग्निका कार्य नहीं होगा; और ऐसा होनेसे, धूम्रकी अपेक्षावाले जो अग्निकी शोध करते हैं, नहीं करेंगे । ऐसा होनेपर अग्नि और धूम्रकी, परस्परकी कारणकार्यता- जो लोकप्रसिद्ध है - नहीं टिकेगी । " इस प्रकार के तर्कही से उन दोनोंकी व्याप्ति साबित होती है और व्याप्ति- निश्चय के बलसे अनुमान किया जाता है । अतएव 'तर्क' प्रमाण है । I ५३७ अनुमान - जिस वस्तुका अनुमान करना हो, उस वस्तुसे अलग नहीं रहनेवाले पदार्थका हेतुका जब दर्शन होता है, और उस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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