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________________ जैन-दर्शन ५१३ ___ महात्मा पतंजलिने योगके लिए लिखा है-" योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः " अर्थात्-चित्तकी वृत्तियों पर दाब रखना-इधर उधर भटकती हुई वृत्तियोंको आत्म-स्वरूपमें जोड़ कर रखना, इसका नाम है योग । इसके सिवाय इस हदपर पहुँचनेके लिए जो जो शुभ व्यापार हैं वे भी योगके कारण होनेसे योग कहलाते हैं। दुनियामें मुक्ति विषयके साथ सीधा संबंध रखनेवाला, एक अध्यात्मशास्त्र है । अध्यात्मशास्त्रका प्रतिपाद्य विषय है-मुक्तिसाधनका मार्ग दिखाना और उसमें आनेवाली बाधाओंको दूर करनेका उपाय बताना । मोक्षसाधनके केवल दो उपाय हैं । प्रथम, पूर्वसंचित कर्मोंका क्षय करना और द्वितीय, नवीन आनेवाले कर्मोंका रोकना । इनमें प्रथम उपायको 'निर्जरा' और द्वितीय उपायको 'संवर' कहते हैं । इनका वर्णन पहिले किया जा चुका है। इन उपायोंको सिद्ध करनेके लिए शुद्ध विचार करना, हार्दिक भावनाएँ दृढ रखना, अध्यामिक तत्त्वोंका पुनः पुनः परिशीलन करना और खराब संयोगोंसे दूर रहना यही अध्यात्मशास्त्रके उपदेशका रहस्य है। ____ आत्मामें अनन्त शक्तियाँ हैं। अध्यात्ममार्गसे वे शक्तियाँ विकसित की जा सकती हैं। आवरणों के हटनेसे आत्माकी जो शक्तियाँ प्रकाशमें आती हैं उनका वर्णन करना कठिन है। आत्माकी शक्तिके सामने वैज्ञानिक चमत्कार तुच्छ हैं। जडवाद विनाशी है, आत्मवाद उससे विरुद्ध है-अविनाशी है। जड़वादसे प्राप्त उन्नतावस्था और जड पदार्थों के आविष्कार सब नश्वर हैं, परन्तु आत्मस्वरूपका प्रकाश और उससे होनेवाला अपूर्व आनंद सदा स्थायी हैं । इन बातोंसे बुद्धिमान् मनुष्य समझ सकता है कि आध्यात्मिक तत्व कितने मूल्यवान् और सर्वोत्कृष्ट हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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