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________________ जैन-दर्शन 'अध्यात्म शब्द ' अधि' और 'आत्मा' इन दो शब्दोंके समाससे मेलसे बना है। इसका अर्थ है आत्माके शुद्धस्वरूपको लक्ष्य करके, उसके अनुसार वर्ताव करना । संसारके मुख्य दो तत्त्व, जड़ और चेतन-जिनमेमे एकको जाने विना दूसरा नहीं जाना जा सकता हैइस आध्यात्मिक विषयमें पूर्णतयां अपना स्थान रखते हैं। "आत्मा क्या चीज है ? आत्माको सुखदुःखका अनुभव कैसे होता है ? सखदुःखके अनुभवका कारण स्वयं आत्मा ही है, या किसी अन्यके संसर्गसे आत्माको सुख-दुःखका अनुभव होता है ? आत्माके साथ कर्मका संबंध कैसे हो सकता है ? वह संबंध आदिमान् है या अनादि ! यदि अनादि है तो उसका उच्छेद कैसे हो सकता है ? कर्मके भेद-प्रभेदोंका क्या हिसाब है ? कार्मिक बंध, उदय और सत्ता कैसे नियमबद्ध हैं ?" अध्यात्ममें इन सब बातोंका भली प्रकारसे विवेचन है। इसके सिवा अध्यात्म विषयमें मुख्यतया संसारकी असारताका हूबहू चित्र खींचा गया है । अध्यात्म-शास्त्रका प्रधान उपदेश, भिन्न मिन्न भावनाओंको स्पष्टतया समझाकर मोहममताके ऊपर दाब रखना है। ___ दुराग्रहका त्याग, तत्त्वश्रवणको इच्छा, संतोंका समागम, साधु पुरुषोंको प्रतिपत्ति, तत्त्वोंका श्रवण, मनन और निदिध्यासन, मिथ्यादृष्टिका नाश, सम्यग्दृष्टिका प्रकाश, क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार कषायोंका संहार, इन्द्रियोंका संयम, ममताका परिहार, समताका प्रादुर्भाव, मनोवृत्तियोंका निग्रह, चित्तकी निश्चलता, आत्मस्वरूपकी रमणता, ध्यानका प्रवाह, समाधिका आविर्भाव, मोहादि कोका क्षय और अन्तमें केवलज्ञान तथा मोक्षकी प्राप्ति; इस तरह आत्मोन्नतिका क्रम अध्यात्मशास्त्रोंमें बताया गया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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