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जैन-दर्शन
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__इस व्रतका निष्कर्ष यह है कि, जान बूझकर-संकल्पपूर्वक किसी निरपराधी त्रस जीवको नहीं मारना चाहिए; नहीं सताना चाहिए। ___इस व्रतमें यद्यपि स्थावर जीवोंकी हिंसाका कोई प्रतिबंध नहीं है, तो भी इस बातका ध्यान रखना चाहिए कि, जहाँतक हो सके स्थावर जीवोंकी व्यर्थ हिंसा न हो । इसके अतिरिक्त अपराधीक संबंधमें भी बहुत गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। साँप, विच्छू आदिको, उनके काट खाने पर, अपराधी समझना और उनको मारनेकी चेष्टा करना अनुचित है । हृदयमें पूर्णतया दयादृष्टि रखनी चाहिए और सर्वत्र विवेकपूर्वक, लाभालाभको सोचकर, प्रवृत्ति करनी चाहिए । यही गृहस्थजीवनका शृंगार है।'
स्थूल मृषावादविरमण-जो सूक्ष्म असत्यसे भी बचनेका व्रत नहीं निभा सकते हैं उनके लिए स्थूल ( मोटे) असत्योंका त्याग करना बताया गया है। इसमें कहा गया है कि, कन्याके संबंधमें, 'पशुओंके संबंधमें, खेत-कूओंके संबंधों और इसी तरहकी और बातोंके संबंध झूठ नहीं बोलना चाहिए। यह भी आदेश किया गया है कि, दूसरोंकी धरोहर नहीं पचा जाना चाहिए, झूठी गवाही नहीं देनी चाहिए और खोटे लेख-दस्तावेज नहीं बनाने चाहिए।'
१--" पड्मु कुष्टिकुणित्वादि दृष्ट्वा हिंसाफलं सुधीः । निरागस्त्रसजन्तूनां हिंसां सङ्कल्पतस्त्यजेत् ॥
--हेमचंद्राचार्यकृत योगशास्त्र । २--"कन्यागोभूम्यलीकानि न्यासापहरणं तथा। कूटसाक्ष्यं च पञ्चेति स्थूलासत्यान्य कीर्तयन् " ॥
(योगशास्त्र)
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