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________________ जैन-रत्न स्थूल अदत्तादानविरमण – जो सूक्ष्म चोरीको त्यागनेका नियम नहीं पाल सकते उनके लिए स्थूल चोरी छोड़नेका नियम किया गया है। स्थूल चोरीमें इन बातों का समावेश होता है - खात डालना, ताला तोड़ना, जेबकटी करना, खोटे बाट-तोले रखना, कम देना ज्यादा लेना आदि; और ऐसी चोरी नहीं करना जो राजनियमों में अपराध बताई गई हो । किसी की रास्ते में पड़ी हुई चीजको उठा लेना किसीके जमीन में गड़े हुए धनको निकाल लेना और किसीकी धरोहर को पचा जाना-इन बातोंका इस व्रतमें पूर्णतया त्याग करना चाहिए ।' ४९६ स्थूल मैथुनविरमण - इस व्रतका अभिप्राय है, परस्त्रीका त्याग करना । वेश्या, विधवा और कुमारीकी संगतिका त्याग करना भी इसी व्रतमें आ जाता है । परिग्रहपरिमाण — इच्छा अपरिमित है । इस व्रतका अभिप्राय है - इच्छाको नियममें रखना । धन, धान्य, सोना, चाँदी, घर, खेत, पशु आदि तमाम जायदाद के लिए अपनी इच्छानुकूल नियम ले लेना चाहिए । नियमसे विशेष कमाई हो, तो उसको धर्मकार्य में खर्च देना चाहिए | इच्छाका परिमाण नहीं होनेसे लोभका विशेष रूप से बोझा पड़ता है; और उसके कारण आत्मा अधोगतिमें चला जाता है । इसलिए इस व्रतकी आवश्यकता है । 3 " १-. 'पतितं विस्मृतं नष्टं स्थितं स्थापितमाहितम् । अदत्तं नाददीत स्वं परकीयं क्वचित् सुधीः ॥ २ - - " षंढत्वमिन्द्रियच्छेदं वीक्ष्याऽब्रह्मफलं सुधी । भवेत् स्वदारसन्तुष्टोऽन्यदारान् वा विवर्जयेत् ॥ " ३--" असन्तोषमविश्वासमारम्भं दुःखकारणम् ! "" मत्वा मूर्च्छाफलं कुर्यात् परिग्रहनियन्त्रणम् ॥ """ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ( योगशास्त्र ) ( योगशास्त्र ) ( योगशास्त्र ) www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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