SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 527
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९४ जैन-रत्न गृहस्थधर्म । शास्त्रकारोंने — गृहस्थधर्म' का दूसरा नाम 'श्रावकधर्म' बताय, है । गृहस्थधर्म पालनेवाले पुरुष · श्रावक' और स्त्रियाँ ' श्राविकाएँ, कहलाती हैं । गृहस्थधर्म पालनेमें बारह व्रत बताये गये हैं। स्थूल प्राणातिपातविरमण, स्थूल मृषावादविरमण, स्थूल अदत्तादानविरमण, स्थूल मैथुनविरमण, परिग्रहपरिमाण, दिखत, भोगोपभोगपरिमाण, अनर्थदंडविरति, सामायिक, देशावकाशिक, पोषध और अतिथिसंविमाग ये उन बारह व्रतोंके नाम हैं । स्थूल प्राणातिपातविरमण--इस विकट व्रतका पालन करना कि कोई भी जीव मेरे द्वारा नहीं मरेगा या हानि नहीं उठायगा, गृहस्थोंके लिए कठिन ही नहीं बल्के असंभव भी है। इसीलिए, गृहस्थोंके लिये योग्यतानुसार स्थूल यानी बड़ी हिंसा नहीं करनेका व्रत बताया गया है । त्रस और स्थावर दो प्रकारके जीव होते हैं। इनके विषयमें पहिले लिखा जा चुका है। स्थावर ( पृथ्वी, जलादि ) जीवोंकी हिंसासे गृहस्थ सर्वथा नहीं बच सकते, इस लिए उनको त्रस ( चलने फिरनेवाले बेइन्द्रिय आदि ) जीवोंकी हिंसा न करनेका व्रत स्वीकारनेका आदेश दिया गया है । इसमें दो बातोंका अपवाद भी है; यानी दो प्रकारकी परिस्थितियोंमें गृहस्थों द्वारा यदि हिंसा हो जाय तो उनमें उनका व्रत-भंग नहीं हो ऐसा कहा गया है। प्रथम, अपराधीका अपराध अक्षम्य हो तो; और दूसरे, घर बनवाना हो, कूआ खुदवाना हो, धर्मशाला बनवाना हो, खेती करवाना हो;-इस प्रकारके आरंभ समारंभ करने हों तो। १-खोदना, गिराना, जलाना आदि । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy