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________________ जैन-दर्शन हो, कभी नहीं घबराता है; वह क्रमशः आगेकी ओर बढ़ता ही जाता है; और अन्तमें वह अपने अभीष्ट स्थान पर पहुँच जाता है। साध्यको लक्ष्यमें न रखकर बाण चलानेवाले धनुर्धरकी चेष्टा जैसे निष्फल जाती है, वैसे ही साध्यको स्थिर किये बिना जो क्रिया की जाती है वह भी निष्फल जाती है । मोक्ष मनुष्यमात्रका-चाहे वह साधु हो या गृहस्थ-वास्तविक साध्य है । इसलिए इसको लक्ष्यमें रख इसको सिद्ध करानेवाले मार्गकी खोज करना प्रत्येकका कर्तव्य है। जो दुराग्रहको छोड़, गुणानुरागी बन, जिज्ञासु बुद्धिसे आत्मकल्याणकी खोज करता है। शास्त्रोंका मनन करता है; उसको वास्तविक निष्कलंक मार्ग मिल ही जाता है। मार्ग जान कर उसपर चलना आवश्यक है। इस बातको हरेक समझ सकता है कि, पानीमें तैरनेकी क्रियाको जानता हुआ भी अगर कोई पानीमें नहीं उतरता है; क्रियाको कार्यमें नहीं लाता है; तैरनेका प्रयत्न नहीं करता है, तो वह समय पर तैर नहीं सकता है । इसलिए शास्त्रकार कहते हैं कि-"सम्यग्ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः"-यथार्थ ज्ञान और तदनुकूल की गई क्रियासे ही मोक्ष मिलता है। सम्यग्ज्ञान । आत्मतत्त्वकी पहिचान करनेका नाम सम्यग्ज्ञान है । आत्माके साथ जिन जड़ तत्त्वोंका-कर्मोंका संबंध है, उनका जब तक वास्तविक स्वरूप समझमें नहीं आता है तब तक मनुष्योंको आत्मतत्त्वका यथार्थ बोध नहीं होता है और आत्मतत्त्वके बोध विना संसारकी सारी विद्वत्ता निरर्थक है । संसारकी क्लेशनालका आधार अज्ञानता है। अतः क्लेशजालको हटानेके लिए अज्ञानको हटाना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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