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________________ ૪૮૮ जैन-रत्न mernmmm...wwwx.nrmmmmmmmmmmmmmm आत्माको मिलते हैं, वैसा ही असर आत्मा पर शीघ्रताके साथ हो जाता है । इसलिए हरेक विचारशील उत्तम संयोगप्राप्तिकी आवश्यकताको स्वीकार करता है । वीतराग देवका स्वरूप परम शान्तिमय है। उसमें राग-द्वेषको लेशमात्र भी स्थान नहीं है। इसलिए उसका सहारा लेनेसे--उसका ध्यान करनेसे आत्मामें वीतरागधर्मका संचार होता है, और क्रमशः ध्याता आत्मा भी वीतराग बन जाता है । संसारमें देखा जाता है कि रूपवती स्त्रीको देखनेसे कामकी उत्पत्ति होती है, पुत्र या मित्रके दर्शन करनेसे स्नेहकी जागृति होती है और एक प्रसन्नात्मा मुनिके दर्शन करनेसे हृदयमें शान्तिका संचार होता है। इन बातोंसे 'सोहबत असर' वाक्यपर विशेष रूपसे ध्यान आकर्षित होता है । वीतरागकी सोहबत है-उनका दर्शन, स्तवन, पूजन या स्मरण करना। इससे आत्मा पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि, उसकी रागद्वेषवृत्ति स्वतः कम हो जाती है। यह ईश्वरपूजनका मुख्य फल है । - पूज्य परमात्माको पूजकसे कुछ प्राप्त करनेकी आकांक्षा नहीं होती; पूज्य परमात्माका पूजकसे कोई उपकार नहीं होता। हाँ, पूजकका उपकार पूज्य परमात्माकी पूजासे अवश्य होता है। पूजा भी वह अपनी भलाईके लिए ही करता है। परमात्माके अवलंबनसे,-परमात्माका एकाग्रचित्त होकर ध्यान करनेसे,-उस एकाग्रभावनाके बलसे, पूजक अपना फल प्राप्त कर सकता है। जैस अग्निके पास जानेसे मनुष्यकी सरदी उड़ जाती है। परन्तु अग्नि किसीको सरदी उड़ानेके लिए नहीं बुलाती और न वह प्रसन्न होकर किसीकी सरदी उड़ाती ही है। इसी प्रकार वीतराग प्रभुकी भी बात है। प्रभुकी उपासना करनेसे राग-द्वेषरूपी सरदी स्वतः उड़ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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