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________________ ४८४ जैन-रन्न हट जानेसे आत्माके सारे गुण प्रकाशित हो जाते हैं। इसीको मोक्ष कहते हैं । इसमें क्या कोई नवीन पदार्थ उत्पन्न होता है ? ___ यह बात खूब ध्यानमें रखनी चाहिए कि सर्वथा निर्मल वने हुए आत्माको फिर कर्मबंध नहीं होता है। कहा है कि:___“ दग्धे बीजे यथाऽत्यन्तं प्रादुर्भवति नाङ्करः । कर्मबीने तथा दग्धे न रोहति भवाङ्करः ॥" भावार्थ-बीजके अत्यंत जल जानेके बाद उसमें अङ्कर नहीं आता; इसी तरह कर्मरूपी बीजके जल जाने पर फिर भवरूपी अङ्कुर उत्पन्न नहीं होते हैं। संसारका संबंध कर्म-संबंधके आधीन है; और कर्मसंबंध रागद्वेषकी चिकनाईके आधीन है। इसलिए जो अत्यंत निर्मल हुए हैं-सर्वथा निर्लेप हो गये हैं, उनके रागद्वेषरूपी चिकनापन कैसे हो सकता है ? उनके कर्मसंबंधकी कल्पना कैसे की जा सकती है ? और इसीलिए यह बात कैसे मानी जा सकती है कि, वे फिरसे संसारमें आयगे। सारे कर्म क्षीण हो सकते हैं। यहाँ आशंका हो सकती है कि, आत्माके साथ कर्मका संयोग जब अनादि है तब उसका नाश कैसे हो सकता है ! क्योंकि अनादि वस्तुका कभी नाश नहीं होता है। तर्कशास्त्रियोंका यही कथन है; संसारका यही अनुभव है। मगर इसके समाधानके लिए यह ध्यानमें रखना चाहिए कि, आत्माके नवीन कर्म बँधते जाते हैं और पुराने खिरते जाते हैं । इससे स्पष्टतया समझमें आ जाता है, कि अमुक कर्म-व्यक्तिका-अमुक आत्मगतपरमाणुसमूहका आत्माके साथ अनादि संबंध नहीं है । प्रत्युत भिन्न २ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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