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________________ जैन-दर्शन ४५९ ही बता सकता है जैसा कि वह आँखोंकी स्थितिमें बता सकता था । यह बात प्रत्यक्ष है । अब अगर हम इन्द्रियोंको आत्मा मानने लगेंगे तो इस प्रत्यक्ष वातको भी, जिसका हरेकको अनुभव है, मिथ्या माननी पड़गी। क्योंकि चक्षुसे देखी हुई चीज, चक्षु ही बता सकता है, दूसरी इन्द्रियाँ उसको नहीं बता सकतीं । जैसे एक मनुष्यकी देखी हुई बात दूसरा मनुष्य नहीं बता सकता है, इसी तरह यह भी बात है। हरेक जानता है कि अमुक बातका एक आदमीको जो अनुभव हुआ है, उसको दूसरा नहीं बता सकता। इन्द्रियाँ भी सब भिन्न २ हैं। इसलिए एक इन्द्रियकी जानी हुई बात दूसरी इन्द्रिय नहीं बता सकती। मगर हम देखते हैं कि मनुष्य एक इन्द्रियसे किसी पदार्थको जानकर, उस इन्द्रियके अमावमें भी उस पदार्थके स्वरूपको जैसाका तैसा बता सकता है। इससे सिद्ध होता है कि, इन्द्रियोंसे परे कोई पदार्थ है, जो इन सबका ज्ञान रखता है । वह पदार्थ है आत्मा । आत्मा पूर्व अनुभूत की हुई बातको कालान्तरमें भी स्मरणद्वारा बता सकता है । इससे सिद्ध होता है कि, आत्मा इन्द्रियोंसे सर्वथा भिन्न है; चैतन्यस्वरूप है। ___प्रायः मनुष्योंको हमने कहते सुना है कि,-मैंने अमुक पदार्थको देखकर उठा लिया-छू लिया । यह, देखना और छूना कहनेवालोंका अनुभव है। इनका विचार करनेसे मालूम होता है कि देखनेवाला और छूनेवाला दोनों एक ही है; भिन्न २ नहीं। यह एक कौन है ! चक्षु ? नहीं, क्यों कि वह स्पर्श नहीं कर सकता है। त्वचा ? नहीं, क्योंकि वह देख नहीं सकती है । इससे यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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