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________________ ४५८ जैन-रत्न maravanmmmmmmmmmmmmm...mmmmmmmmmm आदिकी सत्ता नहीं होती है, वैसे ही जड़ शरीरभी ज्ञान, सुख आदि धर्मोकी सत्ता नहीं हो सकती है। शरीरमें पाँच इन्द्रियाँ हैं । मगर उनको साधन बनानेवाला उनसे कार्य लेनेवाला आत्मा है । कारण यह है कि आत्मा इन्द्रियोंके द्वारा रूप, रसादिका ज्ञान करता है । वह चक्षुसे रूपको देखता है, जिव्हासे रसको चखता है, नाकसे गंध लेता है, कानसे शब्द सुनता है और त्वचासे (चमड़ीसे) स्पर्श करता है । इस बातको सरलतासे समझनेके लिए एक दो, उदाहरण उपयोगी होंगे। चाकूसे कलम बनाई जाती है; मगर चाकू और कलम बनानेवाला भिन्न २ होते हैं; दीपकके प्रकाशसे मनुष्य देख सकता है। परन्तु दीपक और देखनेवाला भिन्न २ होते हैं। इसी तरह इन्द्रियोंसे रूप, रस, गंधादि विषय ग्रहण किये जाते हैं; परन्तु ग्रहण करनेवाला और इन्द्रियाँ दोनों भिन्न भिन्न हैं। यह ठीक है कि, साधकको साधनकी आवश्यकता रहती है। परन्तु इससे साधक और साधन एक ही चीज नहीं हो सकते । इसी तरह आत्मा साधक है और इन्द्रियाँ साधन हैं, इसलिए आत्मा और इन्द्रियाँ एक नहीं हो सकते । यह बात भी ध्यानमें रखनेकी है कि इन्द्रियाँ एक ही नहीं है । वे पाँच हैं । इस लिए यदि इन्द्रियोंको आत्मा मानने जाते हैं तो एक शरीरमें पाँच आत्माएँ हो जाती हैं, जिनका होना सर्वथा असंभव है। ___ अब हम इसका दूसरे दृष्टिबिन्दुसे विचार करेंगे। समझो कि एक आदमीकी आँखें फूट गई हैं, मगर वह आदमी उन सक पदार्थोंका, जिनको उसने आँखोंकी स्थितिमें देखा था, स्वरूप वैसा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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