________________
२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
४३५
मोक्ष (निर्वाण)
उसी दिन प्रभुने सोचा, आज मैं मुक्त होनेवाला हूँ और गौतमका मुझपर बहुत ज्यादा स्नेह है । वह स्नेह ही उनको केव लज्ञान नहीं होने देता है । इसलिए वह काम करना चाहिए जिससे उनका स्नेह नष्ट हो जाय । फिर उन्होंने गौतम स्वामीको कहा:-" गौतम, पासके गाँवमें देवशर्मा नामका ब्राह्मण है। वह तुम्हारे उपदेशसे प्रतिबोध पायगा इसलिए तुम उसको उपदेश देने जाओ।"
गौतमस्वामी जैसी आपकी आज्ञा कह, नमस्कार कर देवशर्माके यहाँ गये । उन्होंने उसे उपदेश दिया और वह प्रतिबोध पाया ।
उस दिन कार्तिक मासकी अमावस, और पिछली रात थी। भगवानके छट्ठका तप था । जब चंद्र स्वाति नक्षत्रमें आया तब प्रभुने पचपन अध्ययन पुण्यफलविपाक संबंधी और पचपन अध्ययन पापफलविपाक संबंधी कहे। फिर उनने छत्तीस अध्ययनवाला अप्रश्न (यानी किसीक पूछ बिना) व्याकरण कहा । जब प्रभु प्रधान नामक अध्ययन कहने लगे तब इन्द्रोंके आसन काँपे । वे भगवानका मोक्ष निकट जान अपने परिवार सहित प्रभुके पास आये । फिर शकेन्द्रने, साश्रु नयन, हाथ जोड़ प्रभुसे विनती की:-" हे नाथ, आपके गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञानके समय हस्तोत्तरा नक्षत्र था । १ गुजरातमें और महाराष्ट्रमें इसको आसोजवदि अमावस कहते हैं।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com