________________
४३६
जैन-रन्न
इस ससय उसमें भस्मक ग्रह संक्रांत होने वाला है-आनेवाला है । आपके जन्म नक्षत्रमें आया हुआ यह ग्रह दो हजार बरस तक आपकी संतितको (साधु, साध्वी और श्रावक, श्राविकाको) तकलीफ देगा इसलिए जबतक भस्मक ग्रह आपके जन्म नक्षत्रमें न आ जाय तबतक आप प्रतीक्षा कीजीए। अगर वह आपके सामने आ जायगा तो आपके प्रभावसे प्रभावहीन हो जायगा-अपना फल न दिखा सकेगा । जब आपके स्मरण मात्रसे ही कुस्वप्न, बुरे शकुन और बुरे ग्रह श्रेष्ट फल देनेवाले हो जाते हैं, तब जहाँ साक्षात आप विराजते हों वहाँका तो कहना ही क्या है ? इसलिए हे प्रभो, एक क्षणके लिए अपना जीवन टिकाकर रखिए कि जिससे इस दुष्ट ग्रहका उपशम हो जाय ।"
प्रभु बोले:-" हे इन्द्र, तुम जानते हो कि आयु बढ़ानेकी शक्ति किसीमें भी नहीं है फिर तुम शासन-प्रेममें मुग्ध होकर ऐसी अनहोनी बात कैसे कहते हो ? आगामी दुषमा कालकी प्रवृत्तिसे तीर्थको हानि पहुँचनेवाली है । उसमें भावीके अनुसार यह भस्मक ग्रह भी अपना फल दिखायगा।"
उस दिन प्रभुको केवलज्ञान हुए उन्तीस बरस पाँच महीने और बीस दिन हए थे। उस समय पर्यकासनपर बैठे हुए प्रभुने बादर काययोगमें रहकर बादर मनोयोग और वचनयोगको रोका। फिर सूक्ष्म काययोगमें स्थित होकर योगविचक्षण प्रभुने बादर काय योगको रोका । तब उन्होंने वाणी और मनके सूक्ष्म योगको रोका । इस तरह सूक्ष्म क्रियावाला तीसरा शुक्ल ध्यान प्राप्त
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com