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________________ ३८८ जैन-रन्न अनुज्ञा है । ' पहले इन्द्रभूतिके मस्तकपर वासक्षेप डाला । फिर क्रमशः दूसरे गणधरोंके मस्तकोंपर डाला । बादमें देवोंने भी प्रसन्न होकर ग्यारहों गणधरोंपर वासक्षेप और पुष्पोंकी दृष्टि की। ___ इसके पश्चात प्रभु सुधर्मा स्वामीकी तरफ संकेतकर बोले,"ये दीर्घजीवी होकर चिरकाल तक धर्मका उद्योत करेंगे।" फिर सुधर्मास्वामीको सब मुनियोंमें मुख्य नियतकर गणकी अनुज्ञा दी। इसके बाद साध्वियोंमें संयमके उद्योगकी व्यवस्था करनेके लिए प्रभुने प्रथम साध्वी श्री चंदनवालाको प्रवर्तिनी पदपर स्थापित किया। ___ इस तरह प्रथम पौरुषी (पहर) पूर्ण हुई। तब राजाने जो बलि तैयार कराई थी उसे नौकर पूर्व द्वारसे ले आया । वह आकाशमें फैंकी गई । आधी देवताओंने ऊपरहीसे ले ली। आधी भूमिपर पड़ी। उसमेंसे आधी राजा और शेष दूसरे लोग ले गये। प्रभु वहाँसे उठे और देवच्छंदमें जाकर बैठे । गौतमस्वामीने उनके चरणोंमें बैठकर देशना दी। उसके बाद कुछ दिन वहीं निवासकर प्रभु अपने शिष्यों सहित अन्यत्र विहार कर गये। कुशाग्रपुरमें राजा प्रसेनजित था । इसके अनेक पुत्र थे । उनमेंसे एकका नाम श्रेणिक था। राजा श्रेणिकको प्रतिबोध श्रेणिकको भंभासार या बिंबसार भी कहते थे। श्रेणिकको बुद्धिमान और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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