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२४ श्री महावीर स्वामी-चरित
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महावीर स्वामीको केवलज्ञान होनेके बाद पहले दिन उन्होंने
जो देशना दी वह निष्फल गई । महावीर स्वामीको विद्वान वहाँसे विहारकर प्रभु अपापा नामक शिष्योंकी प्राप्ति नगरमें आये। वहाँ शहरके बाहर
महासेन वनमें देवताओंने समवसरणकी रचना की । बत्तीस धनुष ऊँचे चैत्यक्षके तीन प्रदक्षिणा दे, 'तीर्थायनमः' कह आहती मर्यादाके अनुसार प्रभु सिंहासनपर बिराजे । नर, देव, पशु सभी अपने अपने स्थानोंपर बैठे । फिर महावीर स्वामीने संसारसागरसे तैरनेका मार्ग बताया । अनेक भव्य लोगोंने उस मार्गपर चलना स्थिर किया ।
उन्हीं दिनों सोमिल नामके एक धनिक ब्राह्मणने अपापामें यज्ञ आरंभ किया था । यज्ञकर्म करानेके लिए इन्द्रभूति, अग्निभूति आदि११ विद्वान ब्राह्मण आये थे। जिस समय यज्ञ चल रहा था उसी समय देवता महावीर स्वामीका दर्शन करने आ रहे थे । देवताओंको देख इन्द्रभूतिने ब्राह्मणोंको कहा:-" अपने यज्ञका प्रभाव तो देखो कि, मंत्रबलसे खिचे हुए देवता अपने विमानों में बैठ बैठकर चले आ रहे हैं।"
मगर देवता तो यज्ञभूमिको छोड़कर आगे चले गये । तब बाहरसे आये हुए एक मनुष्यने कहा:-"शहरके बाहर एक सर्वज्ञ आये हुए हैं । देव उन्हींकी वंदना करने और उनका उपदेश सुनने जा रहे हैं । सर्वज्ञका नाम सुनते ही इन्द्रभूति क्रोधसे जल उठा । वह बोला:--"कोई पाखंडी
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