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________________ ३७६ जैन-रत्न इस कोष्ठकसे महावार स्वामीका भोजन करनेका वार्षिक औसत ( सरासरी) २८ दिन आता है । ४-श्रीनाथूरामजीके पुत्र हेमचंद्रसे सन १९२४ में २६ उपवास कराये गये । उस समय उसकी उम्र केवल १४ बरसकी थी। (४) अलबर्ट बीट नामक सज्जन २८ बरसतक बीमारीके कारण बिस्तरपर पड़े रहे। किसी तरह अच्छे न हुए। उन्होंने ४६ दिनतक उपवास किया आर वे बिल्कुल अच्छे हो गये। (५) एक ईसाई महात्माके मित्रकी स्त्री मर गई थी। वह बहुत दुखी हुआ । उसने मरनेका इरादा कर अन्नजल छोड़ दिया । ७० दिन. तक उपवास करनेपर भी वह न मरा। (उपवास चिकित्सा ) (६) आचार्य श्री वल्लभविजयजीके शिष्य तपस्वी गुणविजयजीने एक सालतक तेले तेलेके पारणेसे भोजन किया और इस तरह साल भरके ३६० दिनमेंसे केवल ९० दिन आहारपानी लिये और २७० दिन निराहार रहे। (७) आयरलैंडके प्रसिद्ध देशभक्त टेरेन्स मेक्खिनी ७२ दिन तक अन्नजलके बगैर जीता रह सका। (८) जतीन्द्रनाथ लाहोरकी जेलमें ४२ दिनतक बगैर अन्न जलके रह सका था । पीछे मरा। (९) सन १९३१ में पूज जवाहरलालीके शिष्य देवीलालजीने (2) उदयपुरमें ७२ दिनके और पूज चौथमलजीके २ शिष्योंने बंबईमें ५४ और ४२ दिनके उपवास किये थे। इस तरह हम देखते हैं कि आज भी उपवास करना कोई असंभव बात नहीं है । मनकी दृढतावाला मनुष्य सरलतासे उपवास कर सकता है और उनसे वह मानसिक और शारीरिक रोगोंसे मुक्त हो सकता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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