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________________ ३७८ जैन-रत्न wwwmammm लोगोंको ठगता होगा । मैं अभी जाकर उसकी सर्वज्ञताकी पोल खोलता हूँ।" क्रोधसे भरा हुआ । इन्द्रभूति समवसरणमें पहुँचा । मगर महावीरकी सौम्य मूर्ति देखकर उसका क्रोध ठंडा हो गया । उसके हृदयने पूछा:--"क्या सचमुच ही ये सर्वज्ञ हैं ?" उसी समय सुधासी वाणीमें महावीर बोले:--"हे वसुभूतिसुत इन्द्रभूति ! आओ ।" इन्द्रभूतिको आश्चय हुआ,- ये मेरा नाम कैसे जानते हैं ? उसके मनने कहा,-तुझे कौन नहीं जानता है ? तू तो जगत्मसिद्ध है। ___ इतनेहीमें जलद गंभीर वाणी सुनाई दी:-“हे गौतम ! तुम्हारे मनमें शंका है कि, जीव है या नहीं?" अपने हृदयकी शंका बतानेवालेके सामने इन्द्रभूतिका मस्तक झुक गया । मगर जब महावीरने शंकाका समाधान कर दिया तब तो इन्द्रभूति एक दम महावीरके चरणोंमें जा गिरे और उन्होंने अपने ५०० शिष्योंके साथ दीक्षा ले ली। १-इन्द्रभूतिके पिताका नाम वसुभूति और माताका नाम पृथ्वी था। उनका गोत्र ‘गौतम' था और जन्म मगध देशके गोबर गाँवमें हुआ था। इनकी कुल आयु ९२ वर्षकी थी। ये ५० बरस गृहस्थ, ३० बरस छद्मस्थ साधु और १२ बरस केवली रहे थे । इन्द्रभूतिके दूसरे दो भाई और थे । उनके नाम अग्निभूति और वायुभूति थे । वे भी पीछेसे महावीरके शिष्य हुए थे। अग्निभूतिकी आयु ७४ बरसकी थी । वे ४६ बरस गृहस्थ १२ छद्मस्थ साधु और १६ बरस केवली रहे थे। वायुभूतिकी आयु ७० बरसकी थी। वे ४२ बरसतक गृहस्थ, १० बरस तक छद्मस्थ साधु और १८ बरस तक केवली थे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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