SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ श्री महावीर स्वामी-चरित ३६१ ग्रहण किया। देवताओंने उसके घर पंच दिव्य प्रकट किये। लोग उसकी प्रशंसा करने लगे । वह मिथ्याभिमानी कहने लगा कि, मैंने खुद प्रभुको परमानसे पारणा कराया है। __जीर्णसेठ प्रभुको आहार करानेकी भावनासे बहुत देरतक खड़ा रहा । उसके अन्तःकरणमें शुभ भावनाएँ उठ रही थीं। उसी समय उसने आकाशमें होता हुआ दुंदुभि नाद सुना । 'अहोदान ! अहोदान !' की ध्वनिसे उसकी भावना भंग हुई। उसे मालूम हुआ कि, प्रभुने नवीन सेठके यहाँ पारणा कर लिया है । उसका जी बैठ गया और वह अपने दुर्भाग्यका विचार करने लगा। * वैशालीसे विहार कर प्रभु अनेक स्थानों में भ्रमण करते हुए सुसुमारपुरमें आये और अष्टम तप सहित एक रात्रिकी * महावीर स्वामी विहार कर जानेके बाद पार्श्वनाथ भगवानके एक केवली शिष्य आये। उनसे राजाने और नगरजनोंने आकर वंदना की और पूछा:-" हे भगवन ! इस शहरमें सबसे आधक पुण्य उपार्जन करनेवाला कौन है ? " केवलीने उत्तर दिया:-" जीर्ण सेठ सबसे अधिक पुण्य पैदा करनेवाला है । " राजाने पूछा:-" प्रभुको पारणा तो नवीन सेठने कराया है और अधिक पुण्य जीर्णसेठने कैसे पैदा किया ?" केवलीने जवाब दियाः- " भावसे तो जीर्ण सेठने ही पारणा कराया है और इसीसे उसने अच्युत देवलोकका आयु बाँधा है । नवीन सेठने भावहीन, दासीके द्वारा आहार दिया है; परंतु तीर्थकरको आहार दिया है इसलिए इस भवके लिए सुखदायक वसुधारादि पंच दिव्य इसके यहाँ 'प्रकट हुए हैं।" यह है शुम भावोंसे और शुभ भावरहित अरहंतको 'पारणा करानेका फल । - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy