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________________ ३६२ जैन-रत्न wwwwwwwwwwwwwww. प्रतिमा धार अशोक खंड नामक उद्यानमें अशोक वृक्षके नीचे स्थित हुए। यहाँ चमरेन्द्रने प्रभुकी शरणमें आकर अपना जीवन बचाया। दूसरे दिन प्रतिमा त्यागकर क्रमशः विहार करते हुए प्रभु भोगपुर नामके नगरमें आये । उसी गाँवमें माहेन्द्र नामका कोई क्षत्रिय रहता था। उसे प्रभुको देखकर ईर्ष्या हुई । बह उन्हें लकड़ी लेकर मारने चला । उसी समय वहाँ सनत्कुमारेन्द्र आया था। उसने माहेन्द्रको धमकाया। फिर वह प्रभुको बांदकर चला गया । ___ भोगपुरसे विहारकर प्रभु नंदी गाँव, और मेढक गाँव होकर कोशांबी नगरीमें आये। उस दिन पोस वदि एकमका दिन था। प्रभुने भीषण नियम लिया-कठोर अभिग्रह किया,-कोई सती राजकुमारी हो, किसीका दासीपन उसे मिला हो, उसके पैरोंमें बेड़ी हो, सिर मुंडा हुआ हो, सूपमें उड़दके बाकले लेकर, रोती १--विभेल नामक गाँवमें एक धनिक रहता था। उसने लक्ष्मीका त्याग कर बालतप किया । उसके प्रभावसे, मरकर वह चमरचंचा नगरीमें एक सागरोपमकी आयुवाला इन्द्र हुआ । उसने अवधि ज्ञानसे अपनेसे अधिक वैभवशाली और सत्ताधारी शकेन्द्रको देखा । इसपर चमरेन्द्रको ईर्ष्या हुई। वह शकेन्द्रसे लड़ने सौधर्म देवलोक गया । शकेन्द्रने उसपर वज्र चलाया । वज्रको आते देख चमरेन्द्र भागा । वज्रने उसका पीछा किया । शकेन्द्र भी उसके पीछे चला । चमरेन्द्र लघु रूप धारकर प्रभुके पैरोंके बीचमें छिप गया । शकेन्द्रने अपने वज्रको पकड़ लिया और चमरेन्द्रको प्रभु-शरणागत समझकर क्षमा कर दिया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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