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________________ २४ श्री महावीर स्वामी-चरित ३५९ __ श्वेतांबीसे विहार कर प्रभु श्रावस्ती नगरीमें आये । वहाँ प्रतिमा धारणकर रहे। उस दिन लोग स्वामी कार्तिकेयकी मूर्तिकी बड़ी धूमधामके साथ पूजा-अर्चा और रथयात्रा करनेवाले थे। यह बात शक्रेन्द्रको अच्छी न लगी । इसलिए उसने मूर्तिमें प्रवेश किया और चलकर प्रभुको वंदना की। भक्त लोगोंने भी महावीर स्वामीको, स्वामी कार्तिकेयका आराध्य समझकर उनकी महिमा की। श्रावस्तीसे विहारकर प्रभु कौशांबी नगरीमें आये । वहाँ सूर्य और चंद्रमाने अपने विमानों सहित आकर प्रभुको वंदना की। कौशांबीसे विहारकर अनेक स्थलोंमें विचरण करते हुए प्रभु वाराणसी (बनारस) पहुँचे । वहाँ शक्रेन्द्रने आकर प्रभुको वंदना की। वहाँसे राजगृही पधारे । वहाँ ईशानेन्द्रने आकर वंदना की। राजगृहीसे विहारकर प्रभु मिथिलापुरी पहुँचे। वहाँ राजा जनकने और धरणेंद्रने आकर प्रभुको वंदना की। मिथिलापुरीसे विहारकर महावीर स्वामी वैशाली आये और वि० सं० ५०३ (ई. स. ५६०) वैशालीमें ग्यारहवाँ पूर्वका ग्यारहवाँ चौमासा वहीं बिताया। चौमासा वहाँ उन्होंने समर नामके उद्यानमें, बलदेवके मंदिरके अंदर चार मास क्षमणकर प्रतिमा धारण की । भूतानंद नामक नागकुमारेन्द्रने आकर प्रभुको वंदना की। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034871
Book TitleJain Ratna Khand 01 ya Choubis Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1935
Total Pages898
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size96 MB
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